सिंधु बॉर्डर की घटना को दलित सवर्ण की घटना मानना कितना उचित?

 
सिंधु बॉर्डर की घटना को दलित सवर्ण की घटना मानना कितना उचित?

तमाम लोग सिंधु बॉर्डर की घटना को दलित सवर्ण की घटनाओं से जोड़ कर देखने को कह रहे हैं। यह वह बेशर्म लोग हैं जो सिखों के गुरुओं ने समाज से जातिप्रथा खत्म करने के लिए जो कुर्बानियां दी हैं उसे झूठा ठहरा रहे। सच्चाई यह है जातिवाद, साम्प्रदायिकता का अंत करने के लिए ही सिख धर्म अस्तित्व में आया।

यह बहुत कम लोग जानते है कि दरअसल लंगर प्रथा इसलिये शुरू ही हुई कि सभी जाति धर्म के लोग एक साथ भोजन करें। दरअसल करतारपुर में नानक जी संगत में आए लोगों के साथ भोजन करने बैठे थे। भोजन परोस दिया गया था, लेकिन नानक जी ने कहा जिन्होंने भोजन बनाया है और जिन्होंने यहां झाड़ू लगाई वो तो अभी आए नहीं। वो अलग भोजन क्यों करेंगे? ईश्वर ने सबको समान बनाया है। सब साथ भोजन करेंगे।

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सिंधु बॉर्डर की घटना को दलित सवर्ण की घटना मानना कितना उचित?

एक और कथा है नानक जी जब गुजरांवाला गए तो एक भक्त लालो बढ़ई के यहां ठहरे। बात फैल गई कि उच्च जाति का संत अछूत लालो के घर पर रुका है। गांव के मुखिया मलिक भागो ने नानक जी को भोजन पर बुलाया। पर नानक जी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा- लालो की सूखी रोटियों में मुझे शहद का स्वाद आता है।

निहंगों द्वारा सिंधु बॉर्डर पर एक व्यक्ति की हत्या न केवल शर्मनाक और घृणित है बल्कि धर्म के नाम पर उन्माद और संकीर्णता का बड़ा उदाहरण है। लेकिन इस एक घटना के आधार पर सिख धर्म और उनके प्रतीकों पर निशाना बनाना शर्मनाक है।

कुछ लोग कह रहे हैं ऐसी किताब को जला देना चाहिए जिसकी वजह से हिंसा हुई है। दरअसल यह लोग उन हत्यारों की तरह हैं जो सच्चे बादशाह " गुरु ग्रंथ साहिब" को नही जानते हैं।

क्या आप जानते हैं गुरु ग्रंथ साहिब एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसमे न केवल सिखों के गुरुओं बल्कि सूफियों,मुस्लिमों हिंदु संतों, दलित संतों की रचनाएं शामिल हैं? क्या आप जानते हैं पीपा, साई, कबीर, रविदास, संत फरीद, रामानांद, त्रिलोचन, सिंधी भाषा के साधना की रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब में हैं?

क्या आप जानते हैं गुरु नानक देव के मुस्लिम शिष्य और साथी मरदाना, राम कली सद नामक मर्सिया के लेखक सुंदर की रचनाएं भी गुरु ग्रंथ साहिब में ही हैं?

मतलब साफ है गुरु ग्रंथ साहिब सिर्फ सिखों का धर्मग्रंथ ही नही है इस देश की धार्मिक, सामाजिक एकता, भाईचारे प्रेम का प्रतीक है। सच्चाई यह है कि गुरु ग्रंथ साहिब से जुड़े तमाम कर्मकांड 19 वीं शताब्दी में जुड़े हैं। यह आराधना का साधन है साध्य नही। वाहे गुरु जी की खालसा, वाहे गुरु जी का फतह।

https://youtu.be/0RbVdmZBuR8

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