ईडी ने IL&FS घोटाले की फॉरेंसिक रिपोर्ट को बताया अधूरी, 30,000 करोड़ से ज्यादा की धोखाधड़ी की आशंका
IL&FS फाइनेंशियल सर्विसेज (IFIN) में हुए कथित वित्तीय घोटाले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने ग्रांट थॉर्नटन द्वारा तैयार की गई फॉरेंसिक रिपोर्ट पर नाराजगी जताई है। ईडी का कहना है कि यह रिपोर्ट केवल ₹2,364 करोड़ के लेन-देन की जानकारी देती है, जबकि कुल वित्तीय अनियमितताओं की राशि ₹13,000 करोड़ से अधिक आंकी गई थी।
IL&FS पर कुल ₹89,000 करोड़ का कर्ज है, जिसमें से ₹65,000 करोड़ की रकम को 'रेड' और 'एंबर' श्रेणी में रखा गया है – यानी वह रकम वापसी के लिहाज से जोखिम में है।
ईडी का आरोप है कि रिपोर्ट में केवल सतही लेन-देन का ज़िक्र किया गया है, जबकि कर्ज वितरण की गहराई से जांच नहीं की गई। रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि जिन कंपनियों को लोन दिया गया, उनमें से कितनी असली हैं और कितनी सिर्फ कागजों पर मौजूद हैं।
एक सूत्र के अनुसार, “रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि लोन की दूसरी या तीसरी परत तक रकम कहां गई और किन लोगों या कंपनियों को फायदा मिला। यही असल जांच का विषय है।”
ईडी की जांच में सामने आया है कि IFIN द्वारा जिन उधारकर्ताओं को लोन दिए गए थे, उन पैसों का इस्तेमाल IL&FS की अन्य ग्रुप कंपनियों को पैसा देने में किया गया। इनमें प्रमुख रूप से ITNL, श्रीनगर सोनमार्ग टनलवे लिमिटेड (₹390 करोड़), गुजरात इंटीग्रेटेड मैरीटाइम कॉम्प्लेक्स (₹250 करोड़), फग्ने-सोंगर्ड एक्सप्रेसवे (₹200 करोड़) और चेन्नई-नाशरी टनलवे (₹150 करोड़) जैसी कंपनियां शामिल हैं।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि कुछ कंपनियों ने IFIN से मिले लोन को सीधे अपने प्रमोटर्स और निदेशकों को ट्रांसफर कर दिया। उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2017 में प्रिज्म को दिए गए ₹75 करोड़ में से एक हिस्सा प्रमोटर गुप्ता को लोन के रूप में दे दिया गया।
इसी तरह, फ्लेमिंगो समूह को ₹514.5 करोड़ का लोन दिया गया, जिसमें से निदेशक कबीर और वीरन आहूजा को ₹8.81 करोड़ मिले।
बाय कैपिटल के प्रमोटर सिद्धार्थ दिनेश मेहता को भी इंडस इक्वीकैप कंसल्टेंसी के ज़रिए ₹2.95 करोड़ ट्रांसफर किए गए।
अब ईडी इस मामले की तह में जाकर यह पता लगाने में जुटी है कि लोन की रकम असली व्यापार में लगी या सिर्फ कागजी कंपनियों के जरिए siphon की गई।