धरती न सही, समंदर न सही... भारत ने 'नियर स्पेस' में बिछा दी जंग की नई बिसात, अब दुश्मन हर तरफ से रहेगा घेरे में

 
धरती न सही, समंदर न सही... भारत ने 'नियर स्पेस' में बिछा दी जंग की नई बिसात, अब दुश्मन हर तरफ से रहेगा घेरे में

नई दिल्ली। अब जंग सिर्फ जमीन या आसमान की नहीं रही। भारतीय वायुसेना ने युद्ध के एक नए रणक्षेत्र में उतरने की पूरी तैयारी कर ली है — 'नियर स्पेस', यानी धरती से 20 से 100 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच का वह इलाका, जिसे अब तक न वायुमंडल माना गया और न अंतरिक्ष। लेकिन अब, भारत ने यहीं 'बाज़' की नजरें बिठा दी हैं।

क्या है Near-Space? क्यों है खास?

'नियर स्पेस' एक गोल्डन ज़ोन है — न तो यह परंपरागत फाइटर जेट्स की सीमा में आता है और न ही सैटेलाइट की तय कक्षा में। लेकिन यह इलाका संचार, निगरानी, मिसाइल डिटेक्शन, और हाई-एंड डेटा ट्रांसमिशन के लिए आदर्श माना जाता है।

यहां से दुश्मन की हर हरकत पर लगातार नजर रखी जा सकती है, और वो भी बिना कोई अंतरराष्ट्रीय संधि तोड़े।

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भारत की नई रणनीति: आसमान से पहले, सैटेलाइट के बाद

भारतीय वायुसेना (IAF) अब इस क्षेत्र में HAPS (High Altitude Pseudo Satellites), स्ट्रेटोस्फेरिक बैलून्स, और AI-ड्रिवन सर्विलांस सिस्टम की तैनाती कर रही है। ये सिस्टम महीनों तक बिना रुके हवा में रह सकते हैं, और 24x7 दुश्मन की जासूसी कर सकते हैं।

पाकिस्तान-चीन के लिए सीधा संदेश

भारत की ये नई तैयारी सिर्फ तकनीकी नहीं, रणनीतिक भी है।

  • पाकिस्तान को अब PoK से लेकर कराची तक, हर मूवमेंट छिपाकर करना होगा।

  • चीन के लिए अरुणाचल और लद्दाख के ऊपर की ‘खामोश हवा’ अब भारतीय निगरानी का हिस्सा बन गई है।

अब दुश्मन को यह मानकर चलना होगा कि भारत सिर्फ जमीन पर नहीं, 'नजरों से बाहर' ज़ोन में भी पहले से मौजूद है।

आने वाले समय की झलक

भारतीय सेना का फोकस अब सिर्फ हथियारों पर नहीं, डोमिनेंस पर है — हर लेयर में, हर स्तर पर। 'नियर स्पेस' भारत के लिए भविष्य की जंग का सबसे अहम चैप्टर बनता जा रहा है।

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