इमरजेंसी की रात: जब इंदिरा गांधी ने पूरी कैबिनेट को चौंका दिया

26 जून 1975, रात करीब 2 बजे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अचानक एक अर्जेंट कैबिनेट मीटिंग बुलाई। सूचना-प्रसारण मंत्री I.K. गुजराल सहित तमाम वरिष्ठ मंत्री जैसे कृष्णचंद्र पंत और स्वर्ण सिंह इस मीटिंग में पहुंचे, और अनुमान लगाया कि शायद प्रधानमंत्री इस्तीफा देने वाली हैं।
लेकिन जो हुआ वह चौंकाने वाला था। इंदिरा गांधी ने सीधे कहा, “जेंटलमेन, इमरजेंसी का ऐलान कर दिया गया है। जेपी, मोरारजी भाई और अन्य नेता गिरफ्तार हो चुके हैं।” कमरे में सन्नाटा छा गया।
स्वर्ण सिंह ही एकमात्र मंत्री थे जिन्होंने सवाल पूछा — जब देश में पहले से बाहरी आपातकाल लागू है, तो आंतरिक इमरजेंसी की क्या जरूरत है? इस पर इंदिरा गांधी ने जवाब दिया कि देश की अंदरूनी स्थिति इतनी गंभीर है कि बाहरी इमरजेंसी पर्याप्त नहीं।
कैबिनेट के बाहर संजय गांधी का दबदबा
मीटिंग खत्म होने के बाद जब I.K. गुजराल बाहर निकले, तो संजय गांधी को खड़ा पाया। उनके व्यवहार से साफ झलक रहा था कि अब सत्ता की कमान उनके पास है। संजय ने शिक्षा मंत्री से RSS से सहानुभूति रखने वाले प्रोफेसरों की लिस्ट मांगी और गुजराल से न्यूज़ बुलेटिन्स को पहले देखने की मांग की। गुजराल ने इससे मना कर दिया।
इंदिरा गांधी को जब यह पता चला, तो उन्होंने एक तरीका सुझाया—बुलेटिन्स को पीएम आवास तक लाने के लिए एक खास व्यक्ति की नियुक्ति। गुजराल इससे संतुष्ट नहीं थे और इस्तीफा देने का मन बना चुके थे।
संजय गांधी से तीखी बहस
बाद में जब गुजराल को दोबारा बुलाया गया, तो इंदिरा नहीं, बल्कि संजय गांधी वहां थे। उन्होंने गुस्से में कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण सारे केंद्रों पर टेलीकास्ट नहीं हुआ। इस पर गुजराल भड़क गए और बोले, “पहले तमीज़ सीखो। तुम मेरे बेटे से भी छोटे हो और मैं तुम्हें जवाबदेह नहीं हूं।”
हालांकि इस्तीफा देने से पहले इंदिरा गांधी ने उन्हें मना लिया और सूचना-प्रसारण मंत्रालय से हटाकर दूसरा मंत्रालय दे दिया। इसके बाद विद्याचरण शुक्ल ने वह मंत्रालय संभाला और सेंसरशिप के सख्त नियम लागू हो गए।
इतिहास की दिशा बदलने वाली रात
उस रात ने भारतीय लोकतंत्र की दशा-दिशा बदल दी। विदेशी पत्रकारों को बाहर कर दिया गया, मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी गई और जनता की आवाज़ कुचल दी गई। गुजराल बाद में कांग्रेस से इस्तीफा देकर जनता दल में शामिल हुए, वी.पी. सिंह सरकार में विदेश मंत्री बने और 1997 में देश के प्रधानमंत्री भी।