प्रेस क्लब में कमल सोई बोले-'दिल्ली में हर साल प्रदूषण से होती हैं 25 हजार से ज्यादा मौतें'
नई दिल्ली: दिल्ली की सड़कों पर 20 लाख ऐसे वाहन दौड़ रहे हैं जो दिल्ली की आवोहवा को प्रदूषित कर रहे हैं. ऐसे वाहनों की पहचान के लिए इन पर कलर कोड वाले स्टिकर लगाया जाना था लेकिन पिछले दो वर्षो से यह काम एक तरह से रुका हुआ है. इतना ही नहीं हर साल दिल्ली में प्रदूषण की वजह से 25 हज़ार लोगों से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, जबकि देशभर में सड़क दुर्घटना में डेढ़ लाख मौतें होती हैं. यह बात भारत सरकार के राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद के सदस्य, परिवहन अनुसंधान प्रयोगशाला यूके के सलाहकार व राहत-द सेफ कम्युनिटी फाउंडेशन के अध्यक्ष कमल सोई ने आज यानि बुधवार को प्रेस क्लब में कही हैं.
इस दौरान उन्होंने कहा है कि एक बार ठीक से लागू होने के बाद, स्टिकर उन नीतिगत उपायों का मार्ग प्रशस्त करेंगे जिन्हें अभी लागू करना मुश्किल है. अगर सही तरीके से लागू किया जाए तो दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को दूर रखने के लिए स्टिकर का इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके अलावा कमल सोई ने कहा कि उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोग कोरोना से इसलिए ज्यादा बीमार हुए क्योंकि यहां वाहनों से निकलने वाला पीएम 2 बहुत ज्यादा है. पीएम 2 सांस के द्वारा फेफड़े तक चला जाता है और ऐसे में आदमी जल्दी बीमार होता है. फिर उन्होंने कहा कि 2019 से पहले की यूरो 4 की गाड़ियों की पहचान के लिए दिल्ली सरकार ने कलर कोड वाली स्टिकर लगाने की बात कही थी लेकिन पिछले दो वर्षों से यह स्टिकर पुरानी गाड़ियों पर नही लगाई जा रही है जिसके कारण सड़कों पर दौड़ रही प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों की पहचान नही हो पा रही है.
20 लाख गाड़ियां 15 साल हैं पुरानी
सोई ने बताया कि दिल्ली में 1.5 करोड़ वाहन हैं जिनमें से 70 फीसदी दोपहिया वाहन है. इसके अलावा करीब 20 लाख ऐसी गाड़ियां हैं जो 10 और 15 साल पुरानी हो चुकी हैं फिर भी वह चल रही हैं. उन्होंने कहा कि फैक्ट्रियों से जो प्रदूषण निकलता है उसमें पीएम 2 नहीं होता है. इसके अलावा फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषण उसी एरिया में रहता है जबकि गाड़ियों से निकलने वाला पीएम 2 पूरे शहर में फैलता है.
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