Maharashtra में पांच महीनों में कैसे बदला राजनीतिक परिदृश्य, महायुति की जीत के 5 बड़े कारण
Maharashtra: 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे, और शरद पवार की महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति को झटका दिया था। हालांकि, केवल पांच महीनों के भीतर महाराष्ट्र की राजनीति ने करवट ली, और महायुति 220 से अधिक सीटों पर जीत हासिल करती दिख रही है।
महायुति की जीत के 5 बड़े कारण
1. लोकलुभावन योजनाएं और महिलाओं का समर्थन
एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा चलाई गई लाडली बहना योजना महिलाओं को साधने में अहम रही। इस योजना के तहत राज्य की 2 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये दिए गए, जिससे महिलाओं की वोटिंग में बढ़ोतरी हुई।
सरकार ने योजनाओं का आक्रामक प्रचार कर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत की।
2. हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हिंदू वोटों के बिखरने का नुकसान हुआ था। इस बार बीजेपी ने "कटोगे तो बटोगे, एक रहोगे तो सेफ रहोगे" जैसे नारों के जरिए हिंदू वोटों को एकजुट किया।
वोट जिहाद और अन्य सांप्रदायिक मुद्दों को उठाकर हिंदू समुदाय को लामबंद किया गया। मराठा और ओबीसी समुदाय के लिए संतुलित रणनीति बनाकर बीजेपी ने उन्हें भी साधने में सफलता पाई।
3. आरएसएस की सक्रिय भागीदारी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उसके 36 सहयोगी संगठनों ने जमीनी स्तर पर बूथ मैनेजमेंट से लेकर मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने तक का काम किया।
संघ ने "जागरण मंच" के तहत मुद्दों को उभारकर चुनावी प्रचार को धार दी, जिससे बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ।
4. बीजेपी का चुनावी मैनेजमेंट
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सटीक रणनीति और रैलियों के जरिए माहौल को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई।
विदर्भ, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाकर बीजेपी ने जातिगत और किसान आधारित समीकरणों को साधा।
5. महायुति का संगठित प्रचार
बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी ने लोकसभा चुनाव में मिली हार से सबक लेकर संगठित रूप से काम किया।
ग्रामीण और शहरी इलाकों में लगातार दौरे और जनसभाओं के जरिए गठबंधन ने मजबूत आधार तैयार किया।
महायुति के लिए ऐतिहासिक जीत
महाराष्ट्र विधानसभा के 288 सीटों में से 221 सीटों पर महायुति की बढ़त ने एमवीए को बैकफुट पर धकेल दिया है।
महा विकास अघाड़ी, जो केवल 55 सीटों तक सिमटती दिख रही है, के लिए यह हार एक बड़ी रणनीतिक विफलता मानी जा रही है।