Manmohan Singh: जब भारत वैश्विक महामंदी से गुजर रहा था और मंडल कमंडल की राजनीति जोरों पर थी
1991, भारत की अर्थव्यवस्था बड़े संकट में थी। संकट का स्तर इतना ज्यादा था कि भारत को अपना सोना गिरवी रखना पड़ सकता हैं? ऐसा प्रस्ताव कांग्रेस ने लोकसभा में दिया था। जो बाद में पारित भी हुआ।
नब्बे के दशक में मंडल और कमंडल का आंदोलन जोर पर था। पूरी राजनीति पर मंडल कमंडल का आभामंडल था। इस आभामंडल में जनता को आर्थिकी भला कैसे याद रहती वीपी सिंह की सरकार गिर गई, चन्द्रशेखर को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया।
देश मे एक अस्थिरता थी विदेश में खाड़ी युद्ध के कारण अस्थिरता थी। 1985 से चले आ रहे मौद्रिक कुप्रबंधन के कारण मुद्रा का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया। चन्द्रशेखर सरकार बजट तक पारित नही कर पाई। हालात यह थे कि भारत के पास केवल तीन हफ्ते का विदेशी मुद्रा का भंडार बचा था। वर्ल्ड बैंक और imf ने भी हाथ खींच लिए थे पूरा भारत डिफाल्टर बनने की कगार पर खड़ा था।
ऐसे भयावह संकट में आते है अर्थव्यवस्था के "मनमोहन" उनके आते ही तस्वीर बदलना शुर हो जाती है। वो भारत मे अभूतपूर्व आर्थिक सुधार लाते है। उन्होंने लाइसेंस राज को कम किया, टैरिफ और ब्याज दरों को कम किया और कई प्रकार की मोनोपोली को समाप्त कर दिया।
जिससे कई क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को जबरदस्त बढ़ावा मिला। मनमोहन सिंह के द्वारा शुरू किए गए सुधारो का ही कमाल था कि 21 वीं सदी के अंत तक, भारत ने मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की दिशा में प्रगति की। अर्थव्यवस्था में सरकार नियंत्रण में पर्याप्त कमी और वित्तीय उदारीकरण में वृद्धि हुई और भारत एक नई आर्थिक शक्ति बनकर उभरा।
2008 में जब विश्व वैश्विक महामंदी से गुजर रहा था तब यह मनमोहन सिंह थे जिन्होंने एक बार फिर इस देश को मंदी के संकट से उबारा था 1991 में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों के कारण भारत की आर्थिकी का आधारभूत ढांचा इतना मजबूत हो गया था कि उसे वैश्विक संकट से उबरने में ज्यादा समय नही लगा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें भारत की आधुनिक अर्थव्यवस्था का जनक कहा था