Mayawati: वो पीछे मुड़ी और ऐसे गरजी कि अटल बिहारी की सरकार गिर गई
भारत की राजनीति को देखा जाए तो बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और काशीराम के बाद दलित राजनीति को सबसे ज्यादा हवा सुश्री मायावती ने दिया है।
शुरुआत में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन में मुख्यमंत्री बनी मायावती एक वक्त अटल बिहारी वाजपेई की सरकार गिराने के लिए जिम्मेदार भी मानी जाती है।
16 अप्रैल 1999..! सुब्रमण्यम स्वामी की राजनैतिक सूज भुज और कठोरता की वजह से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की एआईएडीएमके ने अटल सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
फिर तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायण ने सदन में विश्वास प्रस्ताव लाने का आदेश दिया। तेरह महीने की अटल सरकार ख़तरे में आ गई। अटल बिहारी वाजपेई की कुर्सी दाव पर लग गई थी।
संसद भवन की गैलरी में वाजपेयी अपनी कार की ओर बढ़ रहे थे, पीछे से आवाज़ आई 'आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं,' इस वायदे को सुनकर अटल जी की मुस्कान लौटी, वो कार में बैठे और चले गए।
ये आश्वासन था उत्तरप्रदेश में दो बार की मुख्यमंत्री और पांच सांसदों की मुखिया बहन मायावती को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल रहा था।
विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग का दिन था। बीच सदन में मायावती पीछे मुड़ी, अपने दोनों सांसद आरिफ़ मोहम्मद ख़ां और अकबर अहमद डंपी की तरफ़ देख कर चिल्लाई, 'लाल बटन दबाओ' और पूरे सदन में सन्नाटा छा गया।
फिर अटल सरकार एक वोट से गिर चुकी थी। कई पत्रकारों ने मायावती के इस फैसले को बेवकूफी और 'राजनैतिक आत्महत्या' बताया। लेकिन राजनीतिक इतिहास गवाह है कि ये उत्तर प्रदेश की सियासत का सबसे मजबूत फैसला था। ये बहन मायावती के सियासी शक्ति की पहली झलकी थी।