Myanmar Massacre की गवाह जैनब ने अपनी पेंटिंग में उतारा दर्द, सात साल से रोहिंग्या शिविर में रह रही

Myanmar Massacre: 19 साल की रोहिंग्या लड़की जैनब ने अपनी पेंटिंग के जरिए म्यांमार नरसंहार के दौरान झेली गई पीड़ा और हिंसा को दुनिया के सामने रखा है। 2017 में हुए नरसंहार के दौरान अपने परिवार के कई सदस्यों को खोने के बाद, जैनब अब बांग्लादेश के कॉक्स बाजार स्थित एक रोहिंग्या शिविर में रह रही हैं।
चित्रों में झलकता दर्द
जैनब की एक पेंटिंग में जलते हुए घरों और सेना के सामने खड़े लोगों का चित्रण है, जो उस घातक हिंसा को दर्शाता है जो उनके जैसे लाखों लोगों ने झेली। वह बताती हैं कि उनके जैसे कई लोगों ने अपने घर जलते देखे और परिवार के सदस्य आग की लपटों में जलते हुए देखे। जैनब का कहना है कि शब्दों में दर्द व्यक्त करना मुश्किल था, इसलिए उन्होंने पेंटिंग के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।
पलायन और संघर्ष
जैनब की पेंटिंग में एक और दृश्य है, जिसमें वह दिखाती हैं कि कैसे रोहिंग्या म्यांमार से बांग्लादेश भागे थे, और कैसे वे उफनती नफ नदी को पार करने के लिए बांस और प्लास्टिक के कनस्तरों से बने बेड़े का इस्तेमाल करते थे। यह दिखाता है कि कैसे 16-20 दिन तक भूखा प्यासा संघर्ष करते हुए लोग अपनी जान बचाने के लिए भागे थे।
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शरणार्थी शिविर में जीवन
लैंसेट ने बताया कि शरणार्थी शिविर में लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। अत्यधिक भीड़, हैजा, डिप्थीरिया और खसरा जैसी संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ गया है, और कुपोषण के कारण लोग ठीक से भोजन नहीं पा पा रहे हैं।
शिक्षा और कला की ओर जैनब का सफर
जैनब ने संघर्षों के बावजूद अपनी शिक्षा जारी रखी और अब वह एक शानदार चित्रकार के रूप में उभर कर सामने आई हैं। उन्होंने अपने कला के माध्यम से उस क्रूरता को चित्रित किया, जिसके कारण लाखों रोहिंग्या लोगों को अपना घर छोड़कर बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी।
समाज को संदेश
जैनब की कला और उनके संघर्ष को देखना हमें यह समझने का अवसर देता है कि कैसे संघर्ष और पीड़ा को कला में रूपांतरित किया जा सकता है। उनकी पेंटिंग्स न केवल रोहिंग्या लोगों के दर्द को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी बताती हैं कि शिक्षा, कला और संघर्ष के बावजूद वह अपने दर्द से उबरने की कोशिश कर रही हैं।