देशभर में 25 करोड़ कर्मचारियों की हड़ताल, निजीकरण और नए श्रम कानूनों के खिलाफ विरोध
नई दिल्ली: देशभर में बुधवार को बड़ी संख्या में श्रमिक और किसान संगठन श्रम कानूनों और निजीकरण के खिलाफ एकजुट होकर राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने वाले हैं। करीब 25 करोड़ लोगों के इस आंदोलन में शामिल होने की उम्मीद है, जिससे बैंकिंग, डाक, कोयला, बीमा और निर्माण क्षेत्र की सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं।
प्रमुख मांगे क्या हैं?
हड़ताल का नेतृत्व कर रही यूनियनों ने केंद्र सरकार से निम्नलिखित मांगें की हैं:
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न्यूनतम मासिक वेतन ₹26,000 किया जाए
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पुरानी पेंशन योजना को दोबारा लागू किया जाए
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श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) को हटाया जाए
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ठेका प्रथा और आउटसोर्सिंग पर रोक लगे
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मनरेगा मजदूरी और दिन बढ़ाए जाएं
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निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगे
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शहरी बेरोजगारों के लिए भी मनरेगा जैसी योजना लाई जाए
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नौकरी में युवाओं को प्राथमिकता मिले, सेवानिवृत्त कर्मचारियों की दोबारा भर्ती बंद हो
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शिक्षा, स्वास्थ्य और राशन जैसी बुनियादी सुविधाओं पर खर्च बढ़ाया जाए
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10 वर्षों से लंबित वार्षिक श्रम सम्मेलन तत्काल आयोजित किया जाए
कौन-कौन हो रहा शामिल?
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सीटू, इंटक और एटक जैसे बड़े ट्रेड यूनियनों ने हड़ताल की अगुवाई की है
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संयुक्त किसान मोर्चा, नरेगा संघर्ष मोर्चा जैसे संगठन भी समर्थन में
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NMDC, इस्पात कंपनियों, राज्य सरकारी कर्मचारी, पब्लिक सेक्टर के लोग हड़ताल में होंगे शामिल
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हालांकि, भारतीय मजदूर संघ (RSS से जुड़ा संगठन) ने खुद को हड़ताल से अलग बताया है
क्या होगा असर?
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बैंकिंग सेवाएं ठप हो सकती हैं
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डाक सेवा, बीमा, खनन और सड़क निर्माण पर असर
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औद्योगिक क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन
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किसान संगठन भी समर्थन में सड़कों पर उतर सकते हैं
इतिहास और परिप्रेक्ष्य
इससे पहले 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022 और 16 फरवरी 2024 को भी इसी तरह की राष्ट्रीय हड़तालें हो चुकी हैं। सभी बार श्रमिक संगठनों ने केंद्र की नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी।