कट्टरपंथी: तालिबान को स्त्रियां समझ नहीं आतीं, ईरान में पर्दे पर लड़के-लड़की को 'टच' करते भी नहीं दिखा सकते
तालिबान को स्त्रियां समझ नहीं आतीं। उनके लिए स्त्रियां बिस्तर पर सोने की वस्तु हैं। तालिबान जबसे सरकार में आया है उसके मीडिया को दिए हर बयान में अबतक जितने नियम और कानून आये हैं सारे-के-सारे स्त्रियों पर पाबंदी के हैं।
यानी हथियारबन्द तालिबानी आतंकवादी न अमेरिका से डरे, न पंजशीर से डर रहे हैं, उन्हें डर लग रहा है तो अफगानिस्तानी स्त्रियों से और सारी मशीनरी(?) लग गयी है स्त्रियों के विरुद्ध फरमान जारी करने में। वे स्त्रियों को लेकर अपनी समझ को बिना झिझके सामने रख रहे हैं।
उनके अनुसार स्त्रियां सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए होती हैं और स्त्रियां मंत्रिमंडल में नहीं हो सकतीं। साथ ही तालिबान का कहना है कि अगर वे इस्लामिक कपड़े पहनकर पढ़ना चाहें तो महिलाएं शिक्षा ले सकती हैं लेकिन उनकी दो और शर्तें हैं-
पहली, उन्हें क्लासरूम में लड़कों से अलहदा बैठना होगा दूसरी, लड़के और लड़कियों की छुट्टी में पांच मिनट का फासला रखना होगा ताकि छुट्टी के बाद दोनों का मिलन न हो।
भारत में संसद पर चिल्लाने वाले एक बार इरान जाइए सेंसर किसे कहते हैं समझ जाइएगा। हम पर्दे पर लड़के-लड़की को 'टच' करते भी नहीं दिखा सकते क्योंकि हमें शासन की ओर से निर्देश है कि ऐसे सीन न दिखाए जाएं।
इसलिए अगर ईरानी फ़िल्म में कोई लड़की पानी में डूब रही हो और नायक उसे नहीं बचाता तो आप नायक को निर्मम मत समझिएगा। असल में हमें ऐसे सेंसर के साथ फिल्में बनानी होती हैं कि लड़के और लड़की एक दूसरे को स्पर्श न करें।
आप सोचिए इस तरह के सेंसर के बाद ईरानी फ़िल्मों ने दुनिया में धूम मचा रखी है। ख़ैर इस्लामिक देशों का पतन आज के युग का स्याह सत्य है। लेकिन दुनिया में शोषण को डिकोड कर प्रतिरोध का साहित्य रचने वाली विचारसरणी अफगानिस्तान पर चुप है।
इस सबके बाद भी मैं आश्वस्त हूँ कि इस्लामिक देशों में कभी भी लोकतंत्र आया तो स्त्रियां ही लाएंगी। समय भले लगे लेकिन लाएंगी वे ही।