राकेश टिकैत को विरासत में मिली है संघर्ष शक्ति, जानिए एक साधारण कांस्टेबल से किसान नेता बनने तक का सफर

 
राकेश टिकैत को विरासत में मिली है संघर्ष शक्ति, जानिए एक साधारण कांस्टेबल से किसान नेता बनने तक का सफर

आपने कई ऐसे लोगो को देखा होगा जो अपने कार्यो की वजह से चर्चाओं मे रहते है जिसमे कई ऐसे लोग भी होते है जो अपने राजनीतिक वर्चस्व से चर्चाओं मे रहते है, ऐसे ही एक व्यक्ति ऐसा भी है जो वर्तमान मे उत्तरी भारत मे हो किसान आंदोलन की वजह से चर्चाओं मे है।

26 नवंबर 2020 से शुरु हुए इस आंदोलन के कदम आज तक नहीं रुक सके हैं। सरकार और किसानों के बीच कईं दफ़ा चर्चा हो चुकी है लेकिन किसान कृषि कानून की वापसी पर अड़े हुए हैं लेकिन केंद्र सरकार भी इस पर डट कर खड़ी है। 26 नवंबर, 2020 से ही दिल्ली के टिकरी, सिंघू और गाज़ीपुर बॉर्डर पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के किसानों का आंदोलन जारी है।

इस आंदोलन के दौर में जो सबसे बड़ा चेहरा रहा वो है भाकियू यानि भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत। ये नाम इससे पहले भी सुना जा चुका था लेकिन इस बड़े आंदोलन के बाद इस चेहरे ने आए दिन सुर्खियां बटोरी।

राकेश टिकैत को विरासत में मिली है संघर्ष शक्ति, जानिए एक साधारण कांस्टेबल से किसान नेता बनने तक का सफर

राकेश टिकैत का जन्म 4 जून 1969 को उत्तर प्रदेश के शिशोली में हुआ था। राकेश टिकैत बालियान खाप गांव के निवासी है। राकेश महेंद्र सिंह टिकैत के छोटे बेटे हैं हैं।

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राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के उस कोर ग्रुप में शामिल हैं जो कृषि संशोधन बिल पर लगातार सरकार से बात कर रही है, गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने वाले किसानों में भी राकेश टिकैत शामिल थे और पिछले पांच दौर की वार्ताओं में भारतीय किसान यूनियन का प्रतिनिधित्व राकेश टिकैत ही कर रहे थे।

राकेश टिकैत की पहचान ऐसे व्यवहारिक नेता की है जो धरना-प्रदर्शनों के साथ-साथ किसानों के हित की बात रखते हैं। किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे राकेश टिकैत के पास इस वक्त भारतीय किसान यूनियन की कमान है और यह संगठन उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के साथ-साथ पूरे देश में फैला हुआ है।

राकेश टिकैत 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी करते थे। राकेश टिकैत ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई की हुई है, लेकिन 1993-1994 में दिल्ली के लाल किले पर स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में चल रहे किसानों के आंदोलन के चलते सरकार का आंदोलन खत्म कराने का जैसे ही दबाव पड़ने लगा उसी समय राकेश टिकैत ने 1993-1994 में दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी।

नौकरी छोड़ राकेश ने पूरी तरह से भारतीय किसान यूनियन के साथ किसानों की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था, पिता महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन की कमान संभाल ली।

15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद इनके बड़े बेटे चौधरी नरेश टिकैत को पगड़ी पहनाकर भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाकर कमान सौंप दी गई थी। राकेश टिकैत ने दो बार राजनीति में भी आने की कोशिश की है, पहली बार 2007 मे उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था। उसके बाद राकेश टिकैत ने 2014 में अमरोहा जनपद से राष्ट्रीय लोक दल पार्टी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन दोनों ही चुनाव में इनको हार का सामना करना पड़ा था।

लाल किले पर चलाया डंकल प्रस्ताव आंदोलन

https://youtu.be/NsAUy1mMNXM
video: thevocalnews

जब उनके पिता महेंद्र टिकैत द्वारा दिल्ली के लाल किले पर डंकल प्रस्ताव हेतु आंदोलन चलाया गया था, जिसमें सरकार द्वारा राकेश टिकैत के ऊपर दबाव डाला जा रहा था कि वह अपने पिता को समझाएं और आंदोलन को खत्म कराएं, सरकार द्वारा राकेश के ऊपर दबाव बनाने के कारण 1993 में राकेश टिकैत ने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद से इन्होंने किसानों के लिए सक्रिय काम करते हुए अपने पिता के साथ काम करना शुरू किया और 1997 में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए।

विरासत बाबा टिकैत' की

राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय किसान नेता रहे हैं, ऐसा माना जाता है कि चौधरी चरण सिंह के बाद महेंद्र सिंह टिकैत को देश के सबसे बड़े किसान नेता थे, वह भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भी थे और क़रीब 25 साल तक वे किसानों की समस्याओं को लेकर संघर्ष करते रहे।

उन्हें क़रीब से जानने वाले बताते हैं कि 1985 तक टिकैत को कम ही लोग जानते थे, मगर उसके बाद, स्थानीय स्तर पर बिजली के दाम और उससे जुड़ी हुई समस्याओं को लेकर कुछ प्रदर्शन हुए जिनमें प्रशासन से टकराव के बाद युवा किसानों ने 'बाबा टिकैत' से उनका नेतृत्व करने की गुज़ारिश की और टिकैत ज़िम्मेदारी लेते हुए नौजवानों के साथ खड़े हो गये।

"महेंद्र सिंह टिकैत की सबसे बड़ी ताक़त थी कि वे अंत तक धर्म-निरपेक्षता का पालन करते रहे, उनकी बिरादरी (जाट) के किसानों के अलावा खेती करने वाले मुसलमान भी उनकी एक आवाज़ पर उठ खड़े होते थे, और इसी के दम पर उन्होंने उस 'विशेष जगह' को भरने का काम किया जो किसान-मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह के बाद खाली हुई थी "

किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए राकेश टिकैत 44 बार जेल भी जा चुके हैं। मध्य प्रदेश में किसान के भूमि न्यायाधिकरण कानून के खिलाफ उन्हें 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था, उसके बाद दिल्ली में लोकसभा के बाहर किसानों ने गन्ना मूल्य बढ़ाने को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था जिसका नेतृत्व भी राकेश ने किया जिसके चलते उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। लेकिन वर्तमान स्थिति अलग है और इसीलिए राकेश टिकैत और मौजूदा किसान आंदोलन के सामने चुनौतियाँ ज़्यादा हैं"

राकेश अब किसी पहचान के मोहताज नहीं है, उनके पिता के संघर्ष की विरासत को अब वह आगे बढ़ाने का काम कर रहें है शायद यही वजह है कि राकेश की एक आवाज पर सभी प्रदेश के किसान उनके समर्थन में खड़े हो जाते है.

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