Ratan Tata : भारत में क्यों सिकुड़ती जा रही पारसियों की संख्या,अंगुली में गिनने लायक बच गए मुंबई में पारसी
सिर्फ देश ही नहीं बल्कि दुनिया में अपनी जाति कौम और बिरादरी के लिए लोग लड़ रहे हैं। उन्हें डर है कि यह खत्म ना हो जाए लेकिन भारत में एक अमीर शख्स थे जमशेदजी टाटा वह जिस बिरादरी से आते थे वह खत्म होने के कगार पर है।
जमशेदजी टाटासे लेकर रतन टाटा साइरस पूनावाला से लेकर साइरस मिस्त्री सभी पारसी है। उद्योग नगरी जमशेदपुर में कभी 800 पारसी परिवार रहा करता था अब सिर्फ 70 हैं। आखिर क्यों कम होता जा रहा यह समुदाय?
भारत को आधुनिक तरीके से विकसित करने में पारसी समुदाय अग्रिम पंक्ति में रहा है। 1968 में जब टाटा स्टील के पूर्व प्रबंध निदेशक डा. जेजे ईरानी यहां आए थे, तब जमशेदपुर में करीब 800 परिवार थे। लेकिन आज सिर्फ 70 परिवार बच गए हैं। परिवार के बजाय व्यक्ति के हिसाब से गिनेंगे तो जमशेदपुर में लगभग 150 पारसी ही बचे हैं।
मुस्लिम आक्रांता से बचने के लिए पारसी भारत में 1300 साल पहले ईरान व फारस की खाड़ी से आए थे। भारत में सबसे पहले गुजरात के नवसारी में बसे, जहां से जमशेदजी नसरवानजी टाटा भी आते हैं।
पारसियों की घटती संख्या खुद कहती कहानी
भारत में पारसी समुदाय ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अनुकूल हो गई। साथ ही व्यापारी वर्ग ने भारत के विविध समुदायों के साथ संबंध बनाए। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने विज्ञान, उद्योग और व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं।
1941 में पारसी क्षसमुदाय की जनसंख्या कुल 1,14,000 थी, अब एक अनुमान के अनुसार 50,000 के आसपास है। आमतौर पर मुंबई में इस समुदाय में एक वर्ष में लगभग 750 मौतें होती हैं वही केवल लगभग 150 जन्म होते हैं। सूरत में पिछले तीन वर्षों में मौतें लगभग तीन गुना हो गई हैं, जबकि जन्म कुछ ही रह गए हैं। इसलिए सरकार ने पारसी जोड़ों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
रूढ़ीवादी परंपरा को ठहराया जाता जिम्मेदार
40 प्रतिशत पारसी विवाह बाहरी लोगों के साथ होते हैं, लेकिन जिन महिलाओं ने इसे चुना है उन्हें अक्सर बहिष्कृत कर दिया जाता है। मतलब महिलाओं को पारसी समुदाय में नहीं गिना जाता है। साथ ही घटते कारकों के रूप में पश्चिम की ओर पलायन और युवाओं की बढ़ती संख्या के अविवाहित रहना भी एक वजह है ।