अंतरिक्ष से लौटे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, गगनयान मिशन के लिए जुटाया अमूल्य अनुभव
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा 16 जुलाई को ड्रैगन 'ग्रेस' यान की कैलिफोर्निया तट पर लैंडिंग के साथ समाप्त हो गई। हालांकि मिशन का समापन हो गया है, लेकिन इसरो के बहुप्रतीक्षित गगनयान मिशन के लिए उनका योगदान अब शुरू होता है।
भारतीय वायुसेना के अधिकारी और टेस्ट पायलट शुभांशु एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक पहुंचने वाले दूसरे भारतीय (राकेश शर्मा के बाद) और पहले निजी मिशन अंतरिक्ष यात्री बने। 39 वर्षीय शुभांशु इसरो के गगनयान कार्यक्रम में चुने गए चार अंतरिक्ष यात्रियों में सबसे युवा सदस्य हैं।
लखनऊ से लेकर अंतरिक्ष तक का सफर
शुभांशु शुक्ला का जन्म 10 अक्टूबर 1985 को लखनऊ के एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। एक एयर शो ने उनके मन में उड़ान और अंतरिक्ष को लेकर चिंगारी जलाई, जो समय के साथ जुनून बन गया। किस्मत ने साथ दिया और एनडीए का एक फॉर्म उनके हाथ लगा, जिससे उनकी यात्रा शुरू हुई।
2006 में वायुसेना में कमीशन पाने के बाद उन्होंने 2,000 घंटे से ज्यादा की उड़ानें भरीं और बाद में IIT बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में M.Tech किया। रूस और भारत में गहन अंतरिक्ष प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वे Axiom-4 मिशन का हिस्सा बने।
मिशन एक्सिओम-4 में 18 दिन का सफर
शुभांशु ने 25 जून को फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए उड़ान भरी और ISS पर 18 दिन बिताए। इस दौरान उन्होंने 7 वैज्ञानिक प्रयोग किए जिनमें जीव विज्ञान, अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी, माइक्रोग्रैविटी, और कॉग्निटिव साइंस शामिल रहे। ये सभी प्रयोग गगनयान मिशन में उपयोग किए जाएंगे।
गगनयान मिशन को मिलेगा लाभ
ISRO के अनुसार, शुभांशु का अनुभव गगनयान मिशन की तैयारी में बेहद महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा। इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश देसाई ने बताया कि यह भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से मजबूत आधार देगा।
इस साल के अंत तक मानवरहित गगनयान मिशन की शुरुआत होगी, जिसके बाद 2 और मानवरहित उड़ानें तय हैं। इसके बाद ही किसी भारतीय को मानवयुक्त यान से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।