सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब सबूत बनेंगी पति-पत्नी की कॉल रिकॉर्डिंग
सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक कानून से जुड़े एक बेहद अहम मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि पति और पत्नी के बीच हुई कॉल रिकॉर्डिंग को पारिवारिक अदालतों में बतौर साक्ष्य (सबूत) स्वीकार किया जा सकता है। यह निर्णय अब भविष्य में वैवाहिक विवादों को सुलझाने में नई दिशा प्रदान करेगा।
क्या था मामला?
एक पारिवारिक विवाद के दौरान एक पक्ष ने अपने जीवनसाथी के कथित अमानवीय व्यवहार को साबित करने के लिए उनकी आपसी बातचीत की रिकॉर्डिंग अदालत में पेश की थी। फैमिली कोर्ट ने इसे सबूत के रूप में स्वीकार कर लिया था, लेकिन पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा हाईकोर्ट का फैसला?
शीर्ष अदालत ने साफ किया कि जब खुद पति-पत्नी के बीच कानूनी विवाद हो, तो ऐसी रिकॉर्डिंग को निजता का हनन नहीं माना जा सकता। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है और इसके लिए जरूरी साक्ष्य देना उसका संवैधानिक अधिकार है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम का हवाला
न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 122 को भी फैसले का आधार बनाया। यह धारा पति-पत्नी के बीच हुई निजी बातचीत को संरक्षण देती है, लेकिन यदि दोनों के बीच ही मुकदमा चल रहा हो, तो यह संरक्षण लागू नहीं होता। कोर्ट ने इसी अपवाद को ध्यान में रखते हुए रिकॉर्डिंग को स्वीकार्य माना।
निजता बनाम न्याय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निजता का अधिकार महत्वपूर्ण जरूर है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है। यदि किसी पक्ष को महत्त्वपूर्ण साक्ष्य पेश करने से रोका जाए, तो यह निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन होगा।
क्या होगा इस फैसले का असर?
इस ऐतिहासिक निर्णय का असर अब पूरे देश में चल रहे हजारों पारिवारिक मामलों पर पड़ेगा। खासकर ऐसे केसों में, जहाँ मानसिक उत्पीड़न, धोखा या हिंसा के आरोप हों, यह फैसला पीड़ित पक्ष को अपना पक्ष साबित करने में सहायता करेगा। हालांकि, रिकॉर्डिंग की प्रमाणिकता और उद्देश्य की जांच अदालत द्वारा की जाएगी।