42वें संशोधन पर Supreme Court की मुहर, 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द वैध
Supreme Court ने सोमवार को उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जो संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द जोड़ने को चुनौती दे रही थीं। यह संशोधन आपातकाल के दौरान किया गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान की प्रस्तावना में संशोधन का अधिकार है।
संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
संशोधन का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का पूरा अधिकार है और इसे संविधान के अन्य प्रावधानों के समान ही संशोधित किया जा सकता है।
समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत में समाजवाद का अर्थ एक कल्याणकारी राज्य से है, जो समानता और अवसरों को सुनिश्चित करता है। यह निजी क्षेत्र के विकास को बाधित नहीं करता, बल्कि सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है।
आपातकाल का प्रभाव: कोर्ट ने यह भी कहा कि 42वें संशोधन को पहले ही न्यायिक समीक्षा का सामना करना पड़ा है और इसे अवैध घोषित नहीं किया जा सकता।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें खारिज
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि प्रस्तावना में संशोधन 1949 में इसके अंगीकरण की तारीख के बाद नहीं हो सकता। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि आपातकाल के दौरान उनकी आवाजें अनसुनी रह गई थीं, इसलिए बड़े बेंच द्वारा मामले की सुनवाई होनी चाहिए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि संशोधन संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप है और इसे अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता।