Tulsi Vivah 2024: महत्वपूर्ण समय, लाभ और आरती से पाए सुखमय जीवन
Tulsi Vivah 2024: एक महत्वपूर्ण हिंदू अनुष्ठान है, जिसे भगवान शालिग्राम और माता तुलसी (पवित्र तुलसी के पौधे) के विवाह के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि यह अनुष्ठान जीवन में शांति, सुख और आशीर्वाद लाता है। इस वर्ष, तुलसी विवाह 12 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। यह विशेष रूप से उन विवाहित जोड़ों के लिए फायदेमंद है जो दांपत्य जीवन में समस्याओं का सामना कर रहे हैं, और उन लोगों के लिए जो विवाह में देरी का सामना कर रहे हैं।
तुलसी विवाह के लाभ
वैवाहिक सुख: यह दांपत्य जीवन की समस्याओं को दूर करने में मदद करता है और रिश्तों में सामंजस्य को बढ़ावा देता है।
जल्दी विवाह: जिन लोगों के विवाह में देरी हो रही है, वे इस अनुष्ठान को करने के बाद एक अच्छा जीवनसाथी पा सकते हैं।
भगवान विष्णु का आशीर्वाद: यह अनुष्ठान भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करता है और समृद्धि लाता है।
सुख और शांति: माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा से शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह 2024 के लिए शुभ मुहूर्त
तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव के अनुसार, 12 नवंबर 2024 को तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 5:29 बजे से शाम 7:53 बजे तक रहेगा। इस समय के बीच तुलसी विवाह अनुष्ठान करना अधिक लाभकारी माना जाता है।
तुलसी माता की आरती
तुलसी माता की आरती तुलसी विवाह अनुष्ठान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह आरती इस प्रकार है:
जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता।।
सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर।
रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता।
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित।
पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में।
मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता।
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी।
प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता।
हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता।
जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता।।
शालिग्राम जी की आरती
शालिग्राम जी की भी पूजा तुलसी विवाह के दौरान विशेष आरती के साथ की जाती है। यह आरती इस प्रकार है:
शालिग्राम सुनो विनती मेरी।
यह वरदान दयाकर पाऊं।।
प्रात: समय उठी मंजन करके।
प्रेम सहित स्नान कराऊँ।।
चन्दन धूप दीप तुलसीदल।
वरन-वरण के पुष्प चढ़ाऊँ।।
तुम्हरे सामने नृत्य करूँ नित।
प्रभु घंटा शंख मृदंग बजाऊं।।
चरण धोय चरणामृत लेकर।
कुटुंब सहित बैकुण्ठ सिधारूं।।
जो कुछ रुखा सूखा घर में।
भोग लगाकर भोजन पाऊं।।
मन वचन कर्म से पाप किये।
जो परिक्रमा के साथ बहाऊँ।।
ऐसी कृपा करो मुझ पर।
जम के द्वारे जाने न पाऊं।।
निष्कर्ष
तुलसी विवाह का समय भगवान शालिग्राम और माता तुलसी के दिव्य मिलन को सम्मानित करने का है। यह केवल उनके रिश्ते का उत्सव नहीं है, बल्कि एक ऐसा तरीका है जिससे जीवन में शांति, समृद्धि और आशीर्वाद लाए जाते हैं। इस शुभ समय में अनुष्ठान करना और आरतियों का पाठ करना इच्छाओं की पूर्ति और रिश्तों में सुधार लाता है।
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