विष्णु भगवान का जन्म कब और कैसे हुआ...
वैदिक काल से ही संपूर्ण विश्व में भगवान विष्णु सर्वोच्च रूप से मान्य रहे हैं. विष्णु पुराण के अनुसार विष्णु जी निराकार हैं. जिनको वेदों में ईश्वर कहा गया है. विष्णु जी का सबसे अधिक भागवत एवं विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है. सभी पुराणों में भागवत पुराण को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. इसी वजह से विष्णु जी का महत्व अन्य त्रिदेव की तुलना में काफी अधिक माना जाता है. पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु जी को जगत का पालनहार कहा गया है. आइए जानते हैं विष्णु जी की उत्पत्ति कैसे हुई थी.
विष्णु भगवान की उत्पत्ति कथा
शिव पुराण के अनुसार काशी नगरी में भगवान सदाशिव और मां आदिशक्ति घूम रहे थे. तभी उसी समय भगवान सदाशिव ने मां आदिशक्ति से कहा कि हे देवी मैं चाहता हूं कि भूमंडल पर एक ऐसा दूसरा व्यक्ति हो, जो सृष्टि का पालन कर सकें. तभी मां आदिशक्ति ने कहा हे प्रभु आपकी सोच पर हमें कोई संदेह नहीं है. आप तो सृष्टि के पालनहार हैं. आपने सृष्टि की भलाई के लिए यह विचार प्रस्तुत किया होगा. भगवान शिव ने देवी आदिशक्ति के यह बोल सुनकर अपने शाम अंग पर अमृत स्पर्श किया. जिससे एक पुरुष की उत्पत्ति हुई. भगवान शिव ने उस व्यक्ति का नाम विष्णु रखा. स्पष्ट रूप से उत्पत्ति भगवान शिव के द्वारा हुई थी. विष्णु के तेज से पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश ही प्रकाश हो गया. उसके बाद विष्णु ने शिवजी से कहा कि हे प्रभु मेरे लिए क्या आज्ञा है. उन्होंने कहा तुम तप करो। विष्णु ने तप किया जिसके पुण्य से हर जगह जल की उत्पत्ति हुई और जीवन का सृजन शुरू हुआ.
विष्णु जी का निवास स्थान क्षीरसागर व बैकुंठ में है. भगवान विष्णु के अस्त्र शंख, चक्र, गदा, धनुष, तलवार आदि आदि हैं. इनका वाहन गरुड़ है. विष्णु की पत्नी महादेवी लक्ष्मी और संतान कामदेव है. विष्णु को दशावतार भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सतयुग में 10 अवतार लिए थे.
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