बिहार में कांग्रेस का अस्तित्व क्यों सिमट के रह गया?
बिहार में पार्टी पर जाति के वर्चस्व और हस्तक्षेप ने कांग्रेस को खोखला कर दिया है। खासकर ब्राह्मण और तथाकथित क्षत्रिय नेताओं के आपसी वर्चस्व की लड़ाई ने। करीब से देखिए तो बिहार में कांग्रेस इकलौती ऐसी पार्टी है जिसके भीतर सामाजिक समीकरण की औपचारिकता भी पूरी नहीं की गई है। संगठन के नाम पर सभी बड़े पदों पर घाघ नेताओं ने कब्जा जमा लिया है।
जमीनी स्तर पर संगठन इतना बर्बाद हो चूका है कि जिला, प्रखंड और बूथ स्तर पर राजद और वाम दलों के कार्यकर्ताओं के सहारे काम चलाया जाता है। सदाकत आश्रम में अध्यक्ष, महासचिव और कार्यकारी अध्यक्ष का ओहदा देकर ऐसे लोगों को बैठाया गया है जो अपने गृह बूथ पर पार्टी को लीड तक नहीं दिलवा सकते है।
लोकसभा में कांग्रेस एक सीट लेकर आती है, विधानसभा में तेजस्वी लहर में भी 19 सीटों पर सिमट जाती है। प्रदेश अध्यक्ष अपने गृह जिले में प्रचार करने नहीं जाते है, जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के नाम पर एक ही जिले के कई नेताओं को संगठन के बड़े पदों पर बैठा दिया जाता है और अंत में नेता कमजोर है कहकर सब पल्ला झाड़ लेते है।
बीच में एक अंजान आदमी बैठा दिया गया है जो हार के बाद सारा ठिकड़ा अपने माथे फोड़ लेता है। उम्मीद है तस्वीर जल्द बदल दी जायेगी।
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