Health Tips: रिसर्च में दावा- बचपन का ट्रॉमा सेंटर देता है कई बीमारियों को जन्म, मोटापे का रहता सबसे ज्यादा खतरा
Health Tips: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लगभग 25 प्रतिशत बच्चों ने कभी न कभी शारीरिक शोषण का अनुभव किया है। इसमे सबसे आम प्रकार हैं मारना ,जलाना और पीटना । इसके अतिरिक्त, लगभग 16 प्रतिशत बच्चों का किसी न किसी तरह से यौन शोषण किया गया है, जिसमें बलात्कार या अन्य प्रकार के अवांछित यौन संपर्क शामिल हैं। जिससे दुर्भाग्यवश, मानसिक उत्पीड़न और बाल आघात (चाईल्डहुड ट्रोमा) भी बढ़ा है। द यूरोपियन जर्नल ऑफ ट्रॉमा एंड एसोसिएशन के शोध के मुताबिक जिन लोगों के साथ बचपन में कोई ट्रोमा या आघात हुआ हो ऐसे लोगों में आगे चलकर सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारी और मोटापे से संबंधित कई अन्य बीमारियों का अधिक खतरा होता है।
शारीरिक और भावनात्मक तौर पर पहुंचता है नुकसान
मनोवैज्ञानिक अक्सर बचपन में अनुभव किए गए आघात का प्रतिकूल प्रभाव शारीरिक और भावनात्मक दोनों ही रूपों में महसूस करते हैं। यह किसी बच्चे के घरेलू हिंसा स्कूल से जुड़ी कोई बूरी घटना का अनुभव या मनोवैज्ञानिक, शारीरिक या यौन शोषण हो सकता है।
मोटापे का अधिक खतरा होता है
अक्सर देखा जाता है कि सिजोफ्रेनिया (एसएमआई) से पीड़ित लोगों में अधिक मोटापा पाया जाता है। ऐसे में कई जैसी गंभीर मानसिक बीमारी विशेषज्ञों का कहना है कि इस मोटापे का बड़ा कारण मानसिक बीमारी के इलाज लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं है। भावनाओं को व्यक्त करने में होती है परेशानी यह सर्वविदित है कि जिन लोगों ने बचपन में दर्दनाक अनुभव किया है, ऐसे लोग ज्यादा व्यवहार कुशल नहीं होते हैं। उन्हें भावनाओं को नियंत्रित करने और व्यक्त करने में परेशानी होती है, और वे विपरीत स्थितियों पर हिंसक या अनुचित तरीके से प्रतिक्रिया कर सकते हैं।छोटे-बड़े बच्चो में अघात के अलग-अलग लक्षण होते हैं। बच्चे में अघात और तनाव के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। छोटे बच्चे बड़े बच्चों की तुलना में अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। छोटे बच्चों में इसके लक्षण अपने माता-पिता से अलग होने का डर, बहुत रोना या चिल्लाना और बुरे सपनों का आना है। वहीं बड़े होने पर वे उदास या अकेला महसूस करने लगते हैं।