ग्रेटर नोएडा में "डोर स्टेप कचरा कलेक्शन" योजना से बनाई जाती बायो गैस, जानें इसकी प्रकिया 

 
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गौतमबुद्ध नगर दिल्ली से सटे होने की वजह से उत्तर प्रदेश का सबसे अहम जिला है, जहां पर बड़ी संख्या में लोग रहते हैं, यहां ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी हो या फिर सेक्टर, हर जगह आपको बड़ी संख्या में लोग रहते मिलेंगे।शहर बड़ी संख्या में आबादी होने की वजह से यहां कूड़ा और कचरे का भी ढेर लगा रहता है जिससे शहर की सफाई व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगता है।प्राधिकरण के द्वारा डोर स्टेप योजना चला कर शहर में घरों से कचरे को उठाकर साफ-सफाई की जा रही है। लेकिन अब आप सोचते होंगे कि घर से उठाए जाने वाले कूड़े का आखिर होता क्या है, तो आज हम आपको बताते हैं कि हमारे और आपके घरों से उठे जाने वाली सूखे और गीले कचरे से बायोगैस बनाई जाती है।

लगभग 18 टन कचरा इलाके में बने प्लांट में लाया जाता है

कचरे से कैसे बायोगैस बनती है और कहां बनाई जाती है,इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं। दरअसल, ग्रेटर नोएडा में गीले और सूखे कचरे से बायोगैस बनाने का हाईटेक और अनोखा तरीके का एक प्लांट बना हुआ है जिसको एक कंपनी ब्लू प्लेनेट एशिया के द्वारा चलाया जाता है, जहां ग्रेटर नोएडा के अलग अलग सेक्टरों और ग्रुप हाऊसिंग सोसायटियों से लगभग 18 टन कचरा इकट्ठा कर नॉलेज पार्क इलाके में बने प्लांट में लाया जाता है। प्लांट में गीले और सूखे कचरे को प्रोसेस कर उसकी बायोगैस बनती है। कचरे के निस्तारण को लेकर डोर स्टेप कूड़ा कलेक्शन के लिए प्राधिकरण के द्वारा अलग-अलग कंपनियों का चयन किया गया है,उसी में से ही एक कंपनी है "ब्लू प्लेनेट एशिया"जोकि ग्रेटर नोएडा में तकरीबन 11000 से भी ज्यादा घरों से कचरा उठाकर लाती है। कंपनी द्वारा ग्रेटर नॉएडा के अलग-अलग घरों से गिला और सूखा कूड़ा उठाया जाता है और ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क में बने प्लांट में कूड़े को अलग-अलग करके इसकी प्रोसेसिंग की जाती है। 

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प्रोसेसिंग के बाद  बायोगैस और अन्य ईंधन बनते हैं


प्रोसेसिंग के बाद इस कचरे से बायोगैस और अन्य ईंधन बनाए जाते हैं। ब्लू प्लेनेट एशिया कंपनी अपने आप में अलग है,यह रीसायकल यूनिट है। इसके संस्थापक प्रशांत सिंह ने बताया कि यह रीसायकल यूनिट अपने आप में अलग है, यहां पर पहले कूड़े को अलग-अलग इलाकों से लाकर इकट्ठा किया जाता है, उसके बाद उनको गुना किया जाता है, ताकि सुखा कचरा और गीला कचरा अलग हो सके, इसके बाद घर से निकलने वाले गीले कूड़े को अलग-अलग तरीके से प्रक्रिया कर, उसका पानी निकाल दिया जाता है, जिसका इस्तेमाल प्लांट में होता है और बायोगैस बनाई जाती है, इसका इस्तेमाल कूड़ा गाड़ियों को चलाने के लिए किया जाता है। वही सूखा कचरा जिसमें प्लास्टिक आदि तमाम सामान मौजूद रहते हैं, उसकी अलग तरीके से प्रोसेसिंग कर अन्य ईंधन बनाए जाते हैं, जिससे प्लांट की अन्य मशीन चलाई जाती हैं। साथ ही उन्होंने बताया है कि रीसायकल यूनिट में जहां कचरे को घरों से अलग-अलग तरीके से इकट्ठा किया जाता है वहीं उसकी प्रक्रिया कर अलग-अलग तरह की ईंधन बनाए जाते हैं, इन ईधन का इस्तेमाल प्लांट की मशीन और चलने वाली गाड़ियां में किया जाता है।

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