12 Jyotirlingas: भारत के 12 ज्योतिर्लिंग जहां भगवान शिव स्वंय स्थापित हुए
भारत के हर कोने मे भगवान शिव और उनके शिवलिग के कई मदिर स्थपित है, जिनके भक्तगण हर जगह देखने को मिलते है. इन्मे से कुछ एैसे है जिनके बारे मे कहा जाता है कि भगवान शिव पृथ्वी पर इन्ही जगहो पर स्वयं प्रकट हुए जिस कारण यहा पर धरती के भीतर से ज्योतिलिंग (Jyotirlingas) प्रकट हो गए.
शिवपुराण की एक कथा के अनुसार यह भी बताया जाता है कि एकबार "सृष्तिकर्ता" ब्रह्म और "जगतपालक" विष्णु में विवाद हुआ कि उनमें श्रेष्ठ कौन है, तब उन दोनों का भ्रम समाप्त करने के लिए शिव एक महान ज्योति स्तंभ के रूप में प्रकट हुए जिसकी थाह ये दोनों देव नहीं सह सके, इसी को ज्योतिलिंग (Jyotirlingas) कहा जाता है.
हिन्दू धर्मग्रंथों में शिव के 12 ज्योतिलिगों ( Jyotirlingas) का उल्लेख मिलता है और जहां- जहां ये ज्योतिलिग स्थापित हुए है आज वहां भव्य शिव मदिर बने हुए है.
आइये जानते है भारत के 12 प्रमुख ज्येतिलिगों ( Jyotirlingas) के उदेश्य और उनकी उत्पति;
सोमनाथ ज्योतिलिंग(Somnath Jyotirlinga)
शिव पुराण में सोमनाथ ज्योतिलिंग को पृथ्वी के सभी ज्योतिलिगों ( Jyotirlingas) में से प्रथम बनाया गया है. यह मदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में वेरावल बंदरगाह से कुछ ही दूरी पर प्रभास पाटन में स्थित हैं. इस मदिर की विशेषता यह है, कि इसे लगभग 17 बार विदेशी आक्रमणकारियों द्धारा तोड़ा गया लेकिन फिर भी आज तक बरकरार है.
चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है और उन्होने शिवशंकर को अपना नाथ स्वामी मानकर तपस्या की थी । इसलिए इस स्थान को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग ( Jyotirlingas) कहा जाता है।
पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं. इन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था. लेकिन चंद्रमा केवल रोहिणी से ही प्रेम करते थे, जिसे बाकि कन्याएं बेहद दुखी थीं. जब उन्होंने अपनी व्यथा अपने पिता को बताई तो दक्ष ने चंद्रमा को हर तरह से समझाने की कोशिश की लेकिन चंद्रमा नही माने. यह देख दक्ष को बेहद क्रोध आया और उन्होंने चंद्रमा को क्षयग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के चलते पृथ्वी पर सारा कार्य रुक गया और चंद्रमा भी बेहद दुखी रहने लगे थे. उनकी प्रार्थना सुन सभी देव और ऋषिगण उनके पिता ब्रह्माजी के पास गए. पूरी बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि चंद्रमा मृत्युंजय भगवान भोलेशंकर का जाप करना होगा. इसके लिए उन्हें अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाना होगा. जैसा उन्होंने कहा था चंद्रदेव ने वैसा ही किया. घोर तपस्या की और 10 करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जाप किया. इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया. जिससे वो शाप मुक्त हो गए और उन्होंने सभी देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान् से प्रार्थना कि वो और माता पार्वती सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहां निवास करें. शिवजी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और ज्योतर्लिंग ( Jyotirlingas) के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहां निवास करने लगे.
मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं
मल्लिकार्जुन ज्येतिर्लिंग( Mallikarjuna Jyotirlinga)
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट के पास पवित्र श्री शैल पर्वत पर स्थित है. इस ज्योतिर्लिंग( Jyotirlingas) में भोलेनाथ और माता पार्वती दोनों की ज्योतियां समाई हुई हैं. यहां मल्लिका से तात्पर्य पार्वती और अर्जुन भगवान शिव के लिए प्रयोग किया गया है.
यह एक सिद्ध स्थान है जहां दर्शन करने मात्र से जीवन सुख, शांति और समृद्धि से पूर्ण हो जाता है.
शिव पुराण की कथा के अनुसार जब श्रीगणेश और कार्तिकेय पहले विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे, तो भगवान शिव ने कहा कि जो पहले पृथ्वी का चक्कर लगाएगा उसका विवाह सबसे पहले होगा. गणपति ने अपने सुझ- बुझ से अपने माता- पिता के चक्कर लगा लिए लेकिन जब कार्तिकेय पृथ्वी के चक्कर लगाने के बाद लौटे तो गणेश जी का पहले विवाह देखकर बहुत ही नाराज हो गए और क्रोंच पर्वत पर चले गए.
जब समस्त देवी देवताओं के आग्रह करने पर भी कार्तिकेय वापस नहीं आए तो माता पार्वती और भगवान स्वंय क्रोंच पर्वत पर चले गए लेकिन उनके आगमन से कार्तिकेय ओर दूर चले गए. अतं में पुत्र के दर्शन की लालसा मे भगवान शिव ज्योति रूप धारण कर उसी स्थान पर विराजमान हो गए. जिसे आज मल्लिकार्जुन ज्येतिर्लिंग के नाम से जाने जाते है. एैसा माना जाता है, कि अमावस्या के दिन भगवान शिव वहां जाते हें और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती जाती है.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग(Mahakaleshwar Jyotirlinga)
महाकालेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित महाकाल का प्रमुख मंदिर है.यह ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) तीन खंडों में विभाजित है, जिसमें सबसे निचले खंड में महाकालेश्वर स्थित हैं. मध्य खंड में "ओमकारेश्वर" भगवान की पूजा की जाती है. वहीं ऊपर के खंड में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है. कहा जाता है कि नागचंद्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन साल में एक बार ही किया जा सकता है, वह भी नाग पंचमी के अवसर पर.
यहा के प्रांगण में एक कुंड बना हुआ है और कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने के बाद मनुष्य के सारे पाप, दोष, संकट उसके ऊपर से हट जाते हैं।
धार्मिक कथाओं में कहा गया है कि अवंतिका यानी उज्जैन नगरी में एक ब्राह्मण परिवार रहा करता था. उस ब्राह्मण के चार पुत्र थे। दूषण नाम का राक्षस ने अवंतिका नगरी में आतंक मचा रखा था. वह राक्षस उज्जैन के सभी वासियों को परेशान करने लगा था. राक्षस के आतंक से बचने के लिए उस ब्राह्मण ने भगवान शिव की अर्चना की. ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उस राक्षस का वध करके उज्जैन की रक्षा की. उज्जैन के सभी भक्तों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की. भक्तों के प्रार्थना करने पर भगवान शिव अवंतिका में ही "महाकाल ज्योतिर्लिंग" के रूप में वहीं स्थापित हो गए.
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग ( Omkareshwar Jyotirlinga)
यह ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है. यह दो स्वरूप में मौजूद है पहले को ममलेश्वर के नाम से और दूसरे को ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है. ममलेश्वर नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर स्थित है. अलग होते हुए भी इनकी गणना एक ही तरह से की जाती है.
ओंकारेश्वर शिवलिंग एक पत्थर के रूप में है, जिसके ऊपर निरंतर जल अर्पित होता रहता है. मंदिर का मंडप अत्यंत मनोहारी है. 60 ठोस पत्थर के स्तंभों पर यक्षी आकृतियों बनाई गयी हैं और चारों तरफ से भित्तियों पर देवी-देवताओं के चित्रों की नक्काशी की गयी है. शिवलिंग के पृष्टभाग भाग में एक आले पर पार्वती की चांदी की प्रतिमा स्थापित है.
ऐसी मान्यता है कि इक्ष्वाकु राजा मान्धाता की भक्ति शिवलिंग को यहाँ खींच लायी थी. इसलिए मंदिर को ओंकार मान्धाता मंदिर भी कहा जाता है. कहा जाता हैं कि यहां पर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास हैं तथा नर्मदा नदी मोक्ष दायनी हैं. शास्त्रों में मान्यता हैं कि जब तक तीर्थ यात्री ओंकारेश्वर के दर्शन कर यहां नर्मदा सहित अन्य नदी का जल नही चढ़ाते हैं, तब तक उनकी यात्रा पूर्ण नही मानी जाती हैं. यहां पर नर्मदा नदी में लगातार 7 दिवस तक सूर्य उदय से समय स्नान कर ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के दर्शन करने से रोग, कष्ट दूर होकर मनचाहा फल एवं मोक्ष की प्राप्ति होती हैं.
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(Kedarnath Jyotirlinga)
केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है. उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के प्राचीन मंदिर का निर्माण महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कराया था.
केदारनाथ को भगवान शिव का आवास माना जाता है, इसका वर्णन 'स्कंद पुराण' में भी आता है. भगवान शिव माता पार्वती से एक प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना 'कि मैं हूं ' भगवान शिव आगे बताते हैं कि इस स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया था तभी से यह स्थान उनके लिए आवास के समान है. इस स्थान को स्वर्ग के समान माना गया है.
एक अन्य कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने कठोर तपस्या की, तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के रूप में सदैव के लिए इस स्थान पर निवास करने लगे. माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह ज्योतिर्लिंग(Jyotirlingas) है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं.
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग(Bhimashankar Jyotirlinga)
प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित 'सह्याद्रि' नामक पर्वत पर है. यह स्थान नासिक से लगभग 120 मील दूर है. 3,250 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर का शिवलिंग काफी मोटा है, इसलिए इसे "मोटेश्वर महादेव" के नाम से भी जाना जाता है.
शिवपुराण में कहा गया है कि पुराने समय में कुंभकर्ण का पुत्र भीम नाम का एक राक्षस था. उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था. अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी. बाद में अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया. अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया. वरदान पाने के बाद राक्षस ने युद्ध में सभी देवी- देवताओं को परास्त करना प्रारंभ कर दिया. इन सब से अत्यंत परेशान होकर सभी देव भगवान शिव की शरण में गए. भगवान शिव ने इस सम्सया का उपाय निकाला और राक्षस से युद्ध करने की ठानी लड़ाई में भगवान शिव ने दुष्ट राक्षस को राख कर दिया और सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में विराजित हो़. उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वे "भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग" के रूप में आज भी यहां विराजित हैं.
ऐसी मान्यता है कि जो भक्त इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद 12 ज्योतिर्लिगों(Jyotirlingas) का नाम जापते हुए इस मंदिर के दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर होते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं.
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग(Kashi Vishwanath Jyotirlinga)
काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के पश्चिमी तट पर 'संकरी गली' में स्थित है. काशी तीनों लोकों में सबसे सुंदर नगरी है, जो भगवान शिव के त्रिशूल पर विराजती है. यहां भगवान के दर्शन करने से पहले भैरव के दर्शन करने होते हैं, कहा जाता है कि भैरव जी के दर्शन करने के बाद ही विश्वनाथ के दर्शन का लाभ मिलता है.
यह ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) दो भागों में विभाजन किया गया है, दाहिने भाग में माँ शक्ति के रूप में विराजमान हैं और दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप में विराजमान हैं. इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है. मंदिर के ऊपर एक सोने का बना छत्र है. इस छत्र को चमत्कारी माना जाता है और इसे लेकर एक मान्यता है, अगर भक्त इस छत्र के दर्शन करने के बाद कोई भी कामना करते है तो उसकी वो मनोकामना पूरी हो जाती है.
ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
त्रयंबकेश्रवर ज्योतिर्लिंग(Trimbakeshwar Jyotirlinga)
महाराष्ट्र के प्रमुख शहर नासिक से महज 28 किलोमीटर की दूरी पर त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) मंदिर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि यहां त्रिदेव विराजमान हैं. यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग(Jyotirlingas) है, जहां केवल भगवान शिव नहीं बल्कि भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा भी हैं.
त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा के बारे में उल्लेख है कि कभी यहां महर्षि गौतम निवास करते थे. एक बार उनके आश्रम में ब्राह्मणों और ऋषियों के छल से उन पर गो.हत्या का अपराध लग गया. ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुरूखी थे. उनके ऊपर सभी ब्राह्मणों का आश्रम छोड़ने का दबाव था. विवश होकर ऋषि गौतम ब्रह्मगिरी पर्वत पर चले गए और वहां भगवान शंकर का घोर तप किया. भगवान शंकर उनसे प्रभावित हुए और प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा. महर्षि गौतम ने उनसे कहा भगवान मैं यही चाहता हूं, कि आप मुझे गो.हत्या के पाप से मुक्त कर दें. भगवान शिव ने कहा . गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो. गो.हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था, इसलिए तुम पहले से पाप मुक्त हो. गौतम मुनि की प्रार्थना पर भगवान शंकर ब्रह्मगिरी की तलहटी में त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के रूप में प्रतिष्ठित हो गए.
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग(Jyotirlingas) में कालसर्प दोष और पितृदोष की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों की जन्म कुंडली में ये दोष पाया जाता है, वह व्यक्ति त्र्यंबकेश्व में आकर पूजा करे तो यह दोष समाप्त हो जाता है.
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग(Baidyanath Jyotirlinga)
यह मंदिर झारखंड राज्य के देवघर शहर में है. यह हिंदू धर्म का बेहद पवित्र स्थल है, जिसे वैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है. जहां पर यह मंदिर स्थित है, उस स्थान को देवघर अर्थात देवताओं का घर कहते हैं. इस ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के बारे में मान्यता है कि यहां पर आने वालों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस कारण इस लिंग को 'कामना लिंग' भी कहा जाता है.
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दशानन कैलाश पर्वत पर शिव की आराधना कर रहा था. कई वर्षों तप करने के बाद भी जब भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए. तब अपना बारी बारी से एक एक करके सिर काटता हुआ अग्निकुंड में समर्पित कर रहा था. ऐसा करते हुए अपने -अपने कुल 9 सर काट डाले कुंड में समर्पित कर दिया, और जैसे ही वह अपना आखरी सर काटने जा रहा था. तब महादेव उसके सामने प्रकट हुए और रावण के सारे सर पहले जैसे करके उसे सबसे बलशाली होने का वर दे दिया. फिर इसके बाद रावण भगवान शिव से अपने साथ लंका चलने को कहा जिसे सुनकर शिव जी बोले कि तुम मेरे इस लिंग को लंका ले जाओ परंतु यह याद रखना अगर तुमने इस लिंग को कहीं पर भी रास्ते में रखा तो यह वही पर स्थापित हो जाएगा. जब रावण शिवलिंग को लंका ले जा रहा था, तब रास्ते मे उन्हें बहुत तीव्र लघुशंका लगी और वो किसी एैसे को खोजने लगे जो उनकी मदद कर सकें. तभी रास्ते में उन्हें एक ग्वाला दिखा इसके बाद रावण ने उससे आग्रह किया कि अगर वह कुछ समय के लिए शिवलिंग को पकड़े रहे तो मैं लघुशंका कर लूं, लघुशंका करते- करते रावण को बहुत समय बीत गया और इधर शिवलिंग के भार से ग्वाला थक गया था.
तो उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया फिर जैसा भगवान शिव ने कहा था वैसा ही हुआ वह शिवलिंग वहीं पर स्थापित हो गया. रावण भगवान की लीला जानकर वहीं पर भोलेनाथ की स्तुति करने लगा. यह देख कर वहां पर सभी देवता भगवान भोलेनाथ के लिए आ गए, शिवलिंग का पूजा किया और उसका नाम वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) रखा.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग(Nageshwara Jyotirlinga)
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) गुजरात राज्य में द्वारका धाम से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, कहा जाता है कि यह मंदिर ढाई हजार साल पुराना.
पुराणों के अनुसार बताया जाता है कि गुजरात प्रांत में एक सुप्रिय नाम का वैश्य रहता था. जो भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था. वह भोजन और जल ग्रहण करने से पूर्व तल्लीन होकर भगवान शिव की पूजा और अर्चना करता था. वहीं दारुक नाम का एक राक्षस सुप्रिय को बहुत तंग करता था और उसकी पूजा में हमेशा ही विघ्न उत्पन्न करता था. एक बार सुप्रिय को दारुक ने उसके मित्रों सहित पकड़कर कैद कर लिया. सुप्रिया उसके कैद में भी भगवान शिव की निरंतर पूजा अर्चना करते रहा. वहीं जब कैदी अवस्था में भी सुप्रिय द्वारा भगवान शिव की पूजा अर्चना की बात दारुक ने सुनीए तब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और वह सुप्रिय को खत्म करने के इरादे से उसके पास आया. दारूक को पास देख कर सुप्रिय डरा नहीं, लेकिन अपने मित्रों की चिंता उसे ज़रूर सताए जा रही थी. उसने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वह आकर उसके मित्रों की रक्षा करें. ठीक तभी भगवन शिव वहां प्रकट हुए और सुप्रिय को पाशुपतास्त्र प्रदान कर दारुक राक्षस को खत्म करने को कहा। इस घटना के बाद सुप्रिय अपने जन्म जन्मांतर से मुक्त होकर भगवान शिव के धाम को चला गया और उस स्थान पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) की स्थापना हो गई.
कहा जाता है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सारे पाप और दुष्कर्म धुल जाते हैं, तथा उसे पुण्य की प्राप्ति होती है.
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग(Rameshwaram Jyotirlinga)
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) तमिलनाडु के रामनाथपुरम् ज़िले में स्थित एक विशालकाय और भव्य मंदिर है. यह हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुन्दर शंख के आकार का द्वीप है.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस मंदिर में जो शिवलिंग हैं उसके पीछे मान्यता यह है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम सीताजी को रावण से छुड़ाने के लिए लंका जा रहे थे तब उन्हें रास्ते में प्यास लगी. जब वे पानी पीने लगे तभी उनको याद आया कि उन्होंने भगवान शंकर के दर्शन नहीं किए हैं ऐसे में वे कैसे जल ग्रहण कर सकते हैं. तब श्री राम ने विजय प्राप्ति के लिए बालू का शिवलिंग स्थापित करके शिव पूजन किया था, क्योंकि भगवान राम जानते थे कि रावण भी शिव का परम भक्त है और युद्ध में उन्हें हराना कठिन कार्य है, इसलिए भगवान राम ने लक्ष्मण सहित शिवजी की आराधना की और भगवान शिव प्रसन्न होकर माता पार्वती के साथ प्रकट होकर श्री राम को विजय का आशीर्वाद दिया. भगवान राम ने शिवजी से लोक कल्याण के लिए उसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में सदा के लिए निवास करने को कहा जिसे "रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग" के नाम से जाना जाता है.
घृष्णेश्रवर ज्येतिर्लिंग(Ghrishneshwar Jyotirlinga)
घृष्णेश्रवर ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से 12 मील दूर 'वेरुल' गांव के पास स्थित है. मान्यता है कि घुष्मेश्वर में आकर शिव के इस स्वरूप के दर्शन से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं.
पुराणों में इस ज्योतिर्लिंग (Jyotirlingas) के लिए यह कथा वर्णित है कि एक तेजस्वी ब्राहमण सुधर्मा और उनकी पत्नी सुदेहा देवगिरिपर्वत के पास रहते थे. सुदेहा कभी भी गर्भवती नहीं हो सकती थी, लेकिन वो संतान चाहती थी. इसलिए उसने अपने पति का विवाह अपनी छोटी बहन घुश्मा के साथ कर दिया. घुश्मा अत्यंत सदाचारिणी और शिव शंकर की परम भक्त थी. घुश्मा प्रतिदिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाती थी और पूरे मन के साथ उनका पूजन करती थी. शिवजी की कृपा ऐसी रही कि कुछ ही समय बाद उसके घर में एक बालक ने जन्म लिया. पूरा परिवार खुशी से रहने लगे, लेकिन पता नहीं कैसे सुदेहा के मन में एक गलत विचार घर कर गया. उसने सोचा कि इस घर में सब तो घुश्मा का ही है मेरा कुछ भी नहीं. इन्हीं सब कुविचारों के साथ एक दिन उसने घुश्मा के पुत्र को रात में सोते समय ही मार दिया वहीं, उसके शव को तालाब में फेंक दिया. यह वही तालाब था जहां घुश्मा हर रोज पार्थिव शिवलिंगों को फेंका करती थी.
जब सुबह हुई तो पूरे घर में कोहराम मच गया. लेकिन घुश्मा ने हर रोज की तरह इस दिन भी भगवान शिव कि मन से पूजा की और जब वो पार्थिव शिवलिंगों को फेंकने तालाब पर गई तो उसका बेटा तालाब के अंदर से निकलकर हमेशा की तरह घुश्मा के चरणों पर गिर पड़ा. तभी शिव जी प्रकट हुए और सुदेहा की इस करतूत से बेहद क्रोधित थे लेकिन घुश्मा ने शिवजी से हाथ जोड़कर विनती की कि वो उसकी बहन को क्षमा कर दें.
घुश्मा ने शिव जी से प्रार्थना कि लोक -कल्याण के लिए वो इसी स्थान पर हमेशा के लिए निवास करें. इसलिए शिवजी यहा ज्योतिर्लिंग(Jyotirlingas) के रूप् मे प्रकट हुए शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण ही इनका नाम घुश्मेश्वर महादेव पड़ा. इसे 'घृष्णेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है.
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