हिन्दू धर्म में हवन के दौरान स्वाहा का उच्चारण क्यों किया जाता है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हम किसी भी हवन/यज्ञ में स्वाहा का प्रयोग इसलिए करते हैं क्योंकि अग्नि देव की पत्नी है स्वाहा. इसीलिए हवन के हर मंत्र के बाद में हम इसका उच्चारण करते हैं. आइए आज हम जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.
किसी भी मंत्र का पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री भगवान को अर्पित करते हैं. हिंदू धर्म में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, हवन, यज्ञ में पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री, अर्घ्य, भोग को भगवान को अर्पित करते हैं. लेकिन हम क्या इस बात को जानते हैं कि आखिर हम किसी भी मंत्र के अंत में स्वाहा शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं.
स्वाहा के उच्चारण का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी यज्ञ को तब तक सफल नहीं माना जाता है जब तक हवन को देवी देवता ग्रहण ना कर ले. लेकिन देवता इसे ग्रहण तभी कर सकते हैं जबतक अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए. श्रीमद्भागवत एवं शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित कई वर्णन है. इनके अलावा ऋग्वेद, यजुर्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में अग्नि के महत्व की रचनाएं हुई है.
हिंदू धर्म में पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि महाराज दक्ष की पुत्री थी स्वाहा, इनका विवाह अग्नि देव के साथ किया गया था. अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से ही हविष्य देवी देवताओं को प्राप्त होता है.
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