जानिए क्यों मनाते है पोला पर्व? कहानी और महत्व
पोला पर्व भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्यौहार है. यह त्यौहार मूल रूप से छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है. इस पर्व पर बैलों को का अधिक महत्व रहता है और छत्तीसगढ़ में बैलों की दौड़ भी होती है. आसपास के गांवों से अनेक बैलों का श्रृंगार करके किसान अपने साथ लाते है और बैलों की दौड़ प्रतियोगिता होती थी. इसे देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुटती है. इस पर्व पर बैलों की पूजा की जाती है. भाद्रपद अमावस्या को भगवान कृष्ण ने किया था पोलासुर का वध, इसलिए इस दिन का नाम पड़ा पोला.
पोला पर्व
इस पर्व के दौरान खरीफ फसल की तैयारी हो चुकी होती है. खेतों में निंदाई, गुड़ाई का काम निपट जाता है. ऐसी मान्यता है कि पोला पर्व के दिन अन्ना माता गर्भ धारण करती हैं, धान के पौधों में दूध भरता है. बैलों को सम्मान देने के उद्देश्य से किसान पोला पर्व पर बैलों की पूजा करते हैं. रात्रि में गांव के पुजारी, मुखिया, गांवों की सीमा में स्थापित देवी-देवता की पूजा करते हैं.
इस दिन सभी किसान भाई पहले अपने बैलों को स्नान करते है उसके बाद उनका अच्छे से श्रृंगार करते हैं. उनके गले में घंटी बांधते है और पैरों में माहोर लगा कर और आभूषण पहना कर दौड़ के लिए ले जाते है.
इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते बैलों की यह दौड़ स्थगित कर दी गई है. इस वर्ष गांव में लकड़ी के बैल अधिक बिक रहे हैं. दरअसल इस वर्ष बच्चे इस पर्व पर मिट्टी और लकड़ी के बैलों की दौड़ करेंगे.
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