क्या है होली को मनाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण?
हिंदू धर्म में ऐसे तो कई त्योहार मनाए जाते है लेकिन होली का अपना एक अलग ही महत्व है. होली न केवल एक त्योहार या परंपरा है बल्कि परियावरण से लेकर आपकी सेहद के लिए भी बेहद फलदायक है. होली से संबंधित धार्मिक परंपराओं से तो हम सभी अवगत है लेकिन आज हम जानेंगे वैज्ञानिक कारणों के बारे में.
वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें अपने पूर्वजों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद उचित समय पर होली का त्योहार मनाने की शुरूआत की. लेकिन होली के त्योहार की मस्ती इतनी अधिक होती है कि लोग इसके वैज्ञानिक कारणों से अंजान रहते हैं.
होली को मनाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो होली का त्योहार एक ऐसे समय पर आता है जब मौसम बदल रहा होता है और ऐसे मौसम में अधिकांश लोगों को सुस्ती रहती है और आलस भी आता है. इस बात से सभी अवगत है कि होली के समय सभी गाने गाते और बजाते हैं. इन्ही गाने बजाने की वजह से व्यक्तियों के शरीर में एक अलग ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे की होली पर शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी, और गुलाल डालने से शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है. जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करते हैं और पोरों में समा जाते हैं और इससे शरीर के आयन मंडल को मजबूती प्रदान करने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं और उसकी सुदंरता में निखार लाते हैं.
मान्यताओं के वैज्ञानिकों के अनुसार जब होलिका दहन के समय व्यक्ति होलिका की परिक्रम करते है तो उससे आपके परियावरण में मौजूद सभी बैक्टीरिया खतम हो जाते है और नकारात्मक ऊर्जा का भी नाश होता है. इसी के साथ एक सकारात्मक ऊर्जा भी उत्पन्न होती है जिससे हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.
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