समुद्र मंथन क्यों करना पड़ा...जानिए कारण

 
समुद्र मंथन क्यों करना पड़ा...जानिए कारण

हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसे कई शास्त्र हैं जिनमें सृष्टि की रचना के बारे में बहुत कथाएं प्रचलित हैं. उन्हीं में से एक है समुद्र मंथन. इसमे समुद्र मंथन में देवताओं और असुरों के मध्य अमृत की वजह से विवाद शुरू हो गया था.
आध्यात्मिक रूप से समुंद्र का अर्थ शरीर और मंथन का अर्थ अमृत व विष दोनों से है. यह कहानी मानव के जीवन से मेल खाती है. क्योंकि इसमें देवता सकारात्मक सोच और असुर नकारात्मक सोच एवं बुराइयों को दर्शाते हैं.

मंथन करने का कारण

ऐसा माना जाता है कि धरती का निर्माण करने के लिए समुद्र मंथन जरूरी हो गया था. क्योंकि उस समय धरती का एक बहुत छोटा सा हिस्सा ही जल से बाहर था. बाकी सब जल से घिरा हुआ. उसमें देवता ही अकेले कुछ नहीं कर सकती थे. इसीलिए असुरों की शक्तियां भी इस्तेमाल की गई. यह भी मानना है कि समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत देवताओं को ही ग्रहण करना है. अमृत किसी भी असुर के हाथ नहीं लगना चाहिए. इसीलिए समुद्र मंथन करना आवश्यक हो गया.

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समुद्र मंथन की कथा

हिंदुओं में बहुत से लोग मंथन की कथा के बारे में जानते होंगे. यह कथा अमृत के प्याले से संबंधित है. समुंद्र मंथन की शुरुआत मंदार पर्वत और वासुकी नाग की सहायता से हुई थीं. मंदार पर्वत समुंद्र डूब ना जाए, इसके लिए भगवान विष्णु ने कछुआ का रूप धारण करके अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को उठाए रखा. समुंद्र मंथन के समय 14 रत्न की प्राप्ति हुई. इनमें से सर्वप्रथम विष निकला. जिसका पान भगवान शिव ने किया. देवी पार्वती के बहुत रोकने पर विष भगवान शिव के गले में अटक गया. तभी से भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा.

इसके अलावा समुद्र मंथन से कामधेनु गाय, उच्चौश्रवा नामक सफेद घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, धन की देवी आदि रत्न प्राप्त हुए. देवताओं और असुरों के बहुत इंतजार करने के बाद सबसे अंत में अमृत प्राप्त हुआ. अमृत के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया. जिससे असुरों का ध्यान अमृत से हट जाए और अमृत देवता ग्रहण कर सकें. भगवान विष्णु के अनुसार ठीक ऐसा ही हुआ सभी असुर भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो उठे. और उसी बीच सभी देवताओं ने अमृत का पान किया.

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