Chaitra Navratri 2022: नवरात्र के पहले दिन इस तरह से करें माता शैलपुत्री को प्रसन्न, जानिए कथा, शुभ मुहूर्त और पूजन सामग्री...

 
Chaitra Navratri 2022: नवरात्र के पहले दिन इस तरह से करें माता शैलपुत्री को प्रसन्न, जानिए कथा, शुभ मुहूर्त और पूजन सामग्री...

Chaitra Navaratri 2022: चैत्र नवरात्रि 02 अप्रैल 2022 दिन शनिवार से प्रारम्भ हो चुके है. नवरात्रि के नौ दिन माता के नौ अलग अलग स्वरूपों को समर्पित होते हैं. नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री को समर्पित है.

आइये आप लोगों को बताते हैं कि इस नवरात्रि माता शैलपुत्री की पूजा किस प्रकार करनी है, शुभ मुहूर्त क्या है और माता का प्रिय रंग व भोग क्या है-

माता शैलपुत्री के बारे में

  • माता शैलपुत्री मां दुर्गा का प्रथम रूप हैं इसीलिए नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है.
  • माता शैलपुत्री को हिमालय की पुत्री होने के कारण शैलपुत्री नाम से जाना जाता है.
  • माता शैलपुत्री की सच्चे मन से व पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति निरोगी होता है और उसे समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है.
  • माता शैलपुत्री को सफेद रंग के वस्त्र अति प्रिय हैं.
  • अविवाहित लड़कियों को माता की पूजा करने से मन चाहा वर प्राप्त होता है.

पूजन सामग्री

माता शैलपुत्री की पूजा करने के लिए निम्न पूजन सामग्रियों की आवश्यकता होती है.

  • कलश
  • सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज)
  • पवित्र स्थान की मिट्टी
  • गंगाजल
  • कलावा
  • आम या अशोक के पत्ते
  • जटा वाला नारियल
  • सुपारी
  • अक्षत
  • पुष्प व पुष्पमाला
  • लाल कपड़ा
  • मिठाई
  • सिंदूर
  • दूर्वा

शुभ मुहूर्त

शैलपुत्री माता की पूजा का शुभ मुहूर्त:- प्रातः 06:10 से 08:34 बजे तक

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कथा और महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष ने एक बार यज्ञ का आयोजन किया. जिसमें उन्होंने समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित किया किन्तु अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को निमंत्रण पत्र नहीं भेजा.

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देवी सती फिर भी यज्ञ में जाने की ज़िद कर रही थी परंतु भगवान शिव ने उन्हें वहां नहीं जाने दिया. अंत में देवी सती की ज़िद के आगे भगवान शिव को मजबूर होकर उन्हें यज्ञ में भेजना पड़ा.

प्रजापति दक्ष यानी अपने पिता के यहां जब देवी सती पहुंची तो वहां उनसे किसी ने प्रेमपूर्वक बात न की, बल्कि उनका और उनके पति भगवान शिव का उपहास बनाया.

यह देवी पति बर्दाश्त न कर पाई और वह स्वयं यज्ञ कुंड में विराजित हो गईं. जब भगवान शिव को यह पता चला तो शिव ने क्रोध में आकर यज्ञ को ध्वस्त कर दिया.

मान्यता है कि देवी सती ने ही बाद में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और तब से उन्हें माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है.

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