Chandra dev: हिंदू धर्म में क्या है चंद्रमा का महत्व, जानें इससे जुड़ी कहानियां
Chandra dev: हिंदू धर्म में विभिन्न धार्मिक अवसरों पर चंद्रमा की उपासना की जाती है. खासकर पूर्णिमा और अमावस्या के दिन चंद्रमा को पूजने का प्रावधान है. चंद्रमा जोकि सूर्य की तरह सौरमंडल का भाग है. हिंदू धर्म में चंद्रमा को एक देवता के तौर पर पूजा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी और भगवान ब्रह्मा की कृपा से चंद्रमा अस्तित्व में आया था.
समय-समय पर हिंदू धर्म में चंद्रमा की उपासना की जाती है, जिसके पीछे कई धार्मिक वजहें हैं. दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ चंद्रमा का विवाह हुआ था, जिन्हें ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माना गया है.
महादेव ने चंद्रमा को अपनी सिर की जटाओं में धारण किया है, ऐसे में चंद्रमा का विशेष धार्मिक महत्व है. हिंदू धर्म में चंद्रमा (Chandra dev) से जुड़ी कई एक पौराणिक मान्यताएं प्रचलित है. जिनके बारे में आज हम जानेंगे…
चंद्रमा (Chandra dev) से जुड़ी पौराणिक कथाएं
ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा अपनी 27 पतियों में से सबसे ज्यादा प्रेम रोहिणी से करते थे. जिस वजह से अन्य 26 पत्नियां बेहद दु:खी रहने लगी. इसके बाद उन्होंने अपने पिता यानि दक्ष प्रजापति से चंद्रमा (Chandra dev) की शिकायत की. इसके बाद दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को क्षय रोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया.
यही कारण है कि चंद्रमा पर दाग-धब्बे मौजूद हैं. इसी श्राप की वजह से अमावस्या के दिनों में चंद्रमा की शक्ति क्षीण होने लगती है और पूर्णमासी के समय चंद्रमा तेज प्रकाश उज्ज्वलित करता है.
अन्य पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब चंद्रमा को अपनी सुंदरता पर घमंड होने लगा था. तब उन्होंने गणेश जी की शक्ल का मजाक उड़ाया था. जिससे क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा (Chandra dev) को बदसूरत होने का श्राप दे दिया. इतना ही नहीं गणेश जी ने यह तक कह दिया कि जो भी चंद्रमा को देखेगा उस पर कलंक लग जाएगा.
ऐसे में इस श्राप की वजह से चंद्रमा को काफी नुकसान हुआ और उन्होंने गणेश जी से माफी मांगी. जिस पर गणेश जी ने कहा कि जो भी व्यक्ति केवल भादो के महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा (Chandra dev) के दर्शन करेगा, वही कलंक का भागीदार होगा.
इस प्रकार चंद्रमा को हिंदू धर्म में बेहद माना गया है अनेक धार्मिक अवसरों पर चंद्रमा को पूजे जाने की परंपरा है.
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