Cyclone Biporjoy के कारण बदल गई द्वारिकाधीश मंदिर की ये परंपराएं, जानें इससे जुड़ी खास बातें
चक्रवात तूफान बिपरजॉय के कारण कुछ दिनों से द्वारिकाधीश मंदिर का ध्वज नहीं बदला जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर द्वारिकाधीश हिंदुओं के 4 धामों में से एक है। इस मंदिर से जुड़ी कई परंपराएं है। प्रतिदिन ध्वज बदलना भी इनमें से एक है, लेकिन चक्रवात बिपरजॉय के कारण कुछ दिनों से द्वारिकाधीश मंदिर का ध्वज नहीं बदला जा रहा है। ये तूफान 16 जून की शाम तक गुजरात पहुंच सकता है। इस समय इसकी रफ्तार 125 से 135 किमी/घंटा रहने का अनुमान है। आशंका है कि चक्रवात बिपरजॉय की तेज हवाओं के कारण द्वारिकाधीश मंदिर में ध्वज बदलने के दौरान हादसा हो सकता है। भगवान द्वारिकधीश मंदिर में ध्वज बहुत ही खास होता है और इसे बदलते समय बहुत सी बातों का ध्यान भी रखा जाता है। आगे जानिए इस ध्वज से जुड़ी खास बातें…
दिन में कितनी बार बदलते हैं ध्वज?
द्वारिकाधीश मंदिर में ध्वज दिन में 1 बार नहीं बल्कि 5 बार बदला जाता है। शायद ही कोई और ऐसा मंदिर होगा जहां प्रतिदिन 5 बार ध्वज बदलने की परंपरा हो। ध्वज चढ़ाने के लिए एडवांस बुकिंग की जाती है। यानी कोई भी आम श्रृद्धालु मंदिर समिति के नियमों का पालन करते हुए अपनी ओर से मंदिर का ध्वज लगवा सकता है। मंदिर में 5 बार आरती की जाती है, इसी दौरान ध्वज बदला जाता है।
कौन बदलता हैं मंदिर का ध्वज?
मंदिर में ध्वज तो कोई भी भक्त अर्पित कर सकता है, लेकिन इसे शिखर पर जाकर बांधने का कार्य सिर्फ अबोटी ब्राह्मण भी करते हैं। ये ब्राह्मणों का एक खास समुदाय है जो द्वारिकाधीश मंदिर की पूजा-पाठ आदि से जुड़ा है। तय नियमों के अंतर्गत जिसे भी मंदिर में ध्वज चढ़ाने का मौका मिलता है, वो व्यक्ति ध्वज लेकर आता है और सबसे पहले इसे भगवान को समर्पित करता है। बाद में अबोटी ब्राह्मण वो ध्वज ले जाकर शिखर पर चढ़ा देते हैं।
कितना लंबा-चौड़ा होता है ये ध्वध?
द्वारकाधीश मंदिर में चढ़ाया जाने वाला ध्वज बहुत खास होता है। इसका परिमाण 52 गज की होती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के काल में द्वारिका में 52
दरवाजे हुआ करते थे। इसलिए भगवान को 52 गज का ध्वज चढ़ाया जाता है। इस ध्वज पर सूर्य-चंद्रमा के प्रतीक बने होते हैं। मंदिर की आरती सुबह 7.30 बजे, सुबह 10.30 बजे, सुबह 11.30 बजे, संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी दौरान ध्वज चढ़ाए जाने की परंपरा है।
वर्ष 1998 में द्वारका से आपदा टली
इस समय जैसी की एक तूफानी आपदा 1998 में आई थी। मौसम विभाग ने गुजरात के तटीय इलाकों में अलर्ट जारी कर दिया था। इस चक्रवाती तूफान को 9 जून 1998 के आसपास द्वारका से टकराना था। लेकिन, एन वक्त पर तूफान की रफ्तार थमकर दोबारा बढ़ गई। इससे तूफान की दिशा बदल गई और तूफान द्वारका के पास से गुजरते हुए कांडला और गांधीधाम पोर्ट से जा टकराया। द्वारकावासी इस घटना को भी द्वारकाधीश का ही चमत्कार मानते हैं।
2001 में आए भूकंप में भी बची द्वारका
गुजरात में सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा 26 जनवरी, 2001 की सुबह भी आई थी। सुबह 8 बजकर 46 मिनट पर गुजरात के सौराष्ट्र में 7.7 तीव्रता का भूकंप आया। इसने कच्छ और भुज में हजारों लोगों की जान ले ली थी। द्वारका में भी रिक्टर पैमाने पर 7.1 तीव्रता के झटके आए थे, लेकिन द्वारका में कोई नुकसान नहीं हुआ। द्वारका के लोग इसे भी द्वारकाधीश की कृपा मानते हैं।
मंदिर पर गिरी बिजली
यह घटना 13 जुलाई 2021 की है। द्वारका नगरी में दोपहर के बाद तेज हवाओं के साथ मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। एक ही घंटे में शहर के कई निचले इलाके जलमग्न हो गए थे। इसी दौरान बादलों की भयंकर गड़गड़ाट के साथ द्वारकाधीश मंदिर के शिखर पर आकाशीय बिजली गिरी, जिससे मुख्य स्तंभ का शिखर टूट गया, लेकिन मंदिर पर खरोंच तक नहीं आई। इसके कुछ देर बाद ही बारिश भी थम गई थी। इसे लेकर भी द्वारकावासियों का मानना है कि इंद्र देवता ने गलती कर दी। द्वारकाधीश ने फिर से सारी मुसीबत अपने ऊपर ले ली।
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