भगवान शिव के पर्व महाशिवरात्रि की व्रत कथा

 
भगवान शिव के पर्व महाशिवरात्रि की व्रत कथा

हिंदुओं में महाशिवरात्रि का पर्व बड़े धूम-धाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है. शिवभक्त उस दिन व्रत रखते हैं. शिव मंदिर में जाकर जल, बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. सभी व्रतों की तरह इस व्रत को भी विधि विधान के साथ पूर्ण किया जाता है. जैसे सभी व्रतों में कथा का अपना अलग ही महत्व होता है. ठीक उसी प्रकार शिवरात्रि के व्रत में भी कथा का प्रचलन है जो इस प्रकार है.

भगवान शिव की महाशिवरात्रि की कथा

महाशिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है एक समय की बात है वाराणसी के एक जंगल में भील रहता था. उस भील का नाम गुरुद्रुह था. उसके परिवार की रोजी-रोटी जंगली जानवरों का शिकार करके चलती थी. एक बार वह शिकार करने के लिए वन में गया. उस दिन भगवान शिव का पर्व शिवरात्रि का दिन था. भील को उस दिन कोई शिकार नहीं मिला. वह रात के समय एक झील के किनारे पेड़ पर चढ़ गया. और सोचने लगा कि जब कोई जानवर पानी पीने आएगा तब मैं उसका शिकार कर लूंगा. भील जिस पेड़ पर चढ़ा था वह पेड़ बेलपत्र का था. और उस पेड़ के नीचे शिवलिंग रखी थी. उसी समय एक हिरनी आई. उसने शिकार करने के लिए धनुष से तीर छोड़ा. जिसकी सहायता से बेलपत्र और जल शिवलिंग पर गिर गया और वहां से हिरनी भाग गई. भील भूखा प्यासा रह गया.

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इसी प्रकार चार बार चारों पहर में जाने अनजाने शिवलिंग की पूजा हो गई. तभी से चारों पहरो में शिवजी की पूजा शिवरात्रि के दिन होने लगी. और भूखे प्यासे रहने के कारण भील का भी व्रत पूर्ण हो गया. शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से भील के पापों का अंत हुआ और उसके जीवन में पुण्य का उदय हुआ. तभी से भील ने शिकार करने का विचार छोड़ दिया. भोले शंकर भील से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वरदान दिया कि त्रेता युग में भगवान राम तुम्हारे घर मित्रता करने के लिए पधारेंगे साथ में मोक्ष की प्राप्ति होगी.
इसी प्रकार जाने अनजाने या पूरी श्रद्धा भाव के साथ जो भगवान शिव का व्रत रखता है. भगवान शिव उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

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