Ganesh Temple Facts: भगवान श्री गणेश के इस मंदिर की क्यों है इतनी मान्यता?

 
Ganesh Temple Facts: भगवान श्री गणेश के इस मंदिर की क्यों है इतनी मान्यता?

हिंदू धर्म में देवी देवताओं को अधिक मान्यता दी जाती हैं. वहीं समस्त देवी देवताओं में सबसे पहले भगवान श्री गणेश को पूजा जाता है. आज हम सर्वप्रथम पूजे जानें वाले देव गणेश जी के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानेंगे जहां साल भर भक्तो की भीड़ रहती हैं. महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में कोंकण समुद्र तट पर भगवान श्री गणेश का एक विशाल मंदिर स्थापित है. इस मंदिर में भक्तों का तांता सालभर लगा रहता है और गणेशोत्सव के दौरान यहां की रौनक आकर्षण का केंद्र होती है. यह मंदिर स्वयंभू गणेश मंदिर पश्चिम द्वारदेवता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं. गणेश जी के इस प्राचीन मंदिर में लोग भगवान गणेश का आशीर्वाद लेने दूर दूर से आते हैं और प्रसन्न होकर जाते हैं. कोंकण समुद्र तट पर स्थित यह मंदिर सुंदर बीच और स्वच्छ पानी के अलावा गणपतिपुले वनस्पति के मामले में भी काफी समृद्ध है. यह समुद्र तट मुंबई से करीब 375 किलोमीटर की दूरी पर रत्नागिरि जिले में बना है. रत्नागिरी के एक छोटे से गांव में बने इस मंदिर वाले क्षेत्र में मैनग्रोव और नारियल के पेड़ों की भरमार है.

भगवान श्री गणेश के मंदिर की मान्यता

रत्नागिरी जिले के इस गांव के लोगों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास 400 साल पुराना है. इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि यहां जो भगवान गणेश की प्रतिमा है वह खुद धरती में से अवतरित हुई है जिसकी वजह से इसे स्वयंभू गणपति भी कहा जाता है. इस प्रतिमा को स्वयंभू का खिताब भी मिला हुआ है. मंदिर में स्थित गणेश जी की मूर्ति सफेद रेत से बनी हुई है और सालाना हजारों भक्तों को आकर्षित करती है. यह एक अखंड चट्टान से नक़्क़ाशा गया ह. यह प्रतिमा हजारों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो मंदिर में भगवान गणपति का आशीर्वाद पाने के लिए हर साल आते है. गणपति को पश्चिम द्वार्देवता माना जाता है. यह माना जाता है कि स्थानीय लोग जो गणपतिपुले में रहते हैं उन्हें खुद भगवान आशीर्वाद देकर उनकी देखभाल करते है. जैसा कि सभी जानते है कि गणपति जी को मोदक अति प्रिय है इसी वजह से इस मंदिर में भी गणेश जी पर मोदक का ही भोग लगाया जाता है.

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