Guruwar ka din: गुरुवार के दिन भूलकर भी ना खाएं केला और चावल, जानिए वजह

 
Guruwar ka din: गुरुवार के दिन भूलकर भी ना खाएं केला और चावल, जानिए वजह


Guruwar ka din: हिंदू धर्म में हर दिन किसी ना किसी देवता को समर्पित होता है. इसी तरह बात गुरुवार की करें तो गुरुवार का दिन विष्णु जी को समर्पित होता है. मान्यता है कि गुरुवार को विष्णु जी की विधि विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

ज्योतिष अनुसार भी देखें तो बृहस्पति ग्रह के पूजन के लिये भी यही दिन होता है. ख़ास तौर पर जिन लड़कियों की शादी में अड़चनें आ रही होती हैं उनको गुरुवार के व्रत रखने की सलाह दी जाती है. साथ ही गुरु ग्रह भी मज़बूत होता है.

गुरुवार के दिन (Guruwar ka din) विष्णु जी की पूजा करना शुभ होता है लेकिन गुरुवार के दिन कुछ सावधानियाँ भी हैं जिन्हें ज़रूर ध्यान में रखना चाहिए वरना विष्णु जी रुष्ट हो जाते हैं. क्या हैं वों सावधानियाँ आइये जानते हैं.

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गुरुवार के दिन (Guruwar ka din) क्यों ना खाएँ केला और चावल

गुरुवार के दिन केले का सेवन नहीं करना चाहिए. इस दिन केला खाना शुभ नहीं माना जाता है. मान्यताओं की मानें तो केले के वृक्ष में देव गुरु बृहस्पति का वास होता है. और केले के वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास होता है .

गुरुवार के दिन (Guruwar ka din) ही केले के पेड़ की पूजा की जाती हैं इसलिए गुरुवार के दिन केले का सेवन नहीं करना चाहिए. इस दिन केला भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है. गुरुवार के दिन व्रत रखने वाले लोगों को भी केले का सेवन नहीं करना चाहिए.

गुरुवार के दिन खिचड़ी या चावल खाने से धन की हानि होती है. और परिवार में दरिद्रता भी आती हैं.इसलिए गुरुवार के दिन खिचड़ी या चावल नहीं ख़ाना चाहिए.

गुरुवार के दिन (Guruwar ka din) पूजा करने की विधि

अगर आप गुरुवार का व्रत करने की सोच रहें हैं तो शुक्ल पक्ष से इस व्रत को शुरू करें. और कम से कम 16 व्रत ज़रूर करें. इसके बाद जिस दिन से व्रत रख रहें हैं उस दिन सुबह उठकर, स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहने. फिर भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. ध्यान रहे कि गुरुवार को पीले कपड़े ही धारण करें.

इसके बाद भगवान विष्णु की कि कथा ज़रूर पढ़ें और आरती करें. भगवान विष्णु को पीले फूल, हल्दी, चंदन अर्पित करें. और भोग में विष्णु जी को गुड़ और चने की दाल का भोग लगाएं. इसके बाद केले की जड़ में पूजा में प्रयोग किया जल चढ़ाएँ. और फिर दिन भाड़ बीट करके सूर्यास्त के बाद व्रत खोलें.

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