सनातन धर्म में पूजा के दौरान प्रयोग होने वाले पंचामृत का महत्व

 
सनातन धर्म में पूजा के दौरान प्रयोग होने वाले पंचामृत का महत्व

मंदिर या पूजा में लगभग सभी लोगों ने पंचामृत ग्रहण किया होगा. लेकिन बहुत कम ही लोग इसकी महिमा और बनाने की विधि को जानते होंगे. चरणामृत का अर्थ होता है, भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत अर्थात 5 पवित्र वस्तुओं से बना प्रसाद. चरणामृत हो या पंचामृत इनका धार्मिक रूप से तो महत्व है ही, लेकिन स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ही लाभदायक माना जाता हैं.

पंचामृत में पड़ने वाले पांच तत्व

5 तरह की विशेष चीजों को मिलाकर पंचामृत का निर्माण किया जाता है. वह चीजें हैं- दूध, दही, मधु, गंगाजल, और घी. बिना पंचामृत के श्री हरि या उनके किसी भी अवतारों की पूजा सफल नहीं हो सकती.

दूध: यह शरीर को पौष्टिक तत्व प्रदान करता है. मन को शांत करके तनाव दूर करता है. यह मोह का प्रतीक माना जाता है.

WhatsApp Group Join Now

दही: यह हमारी पाचन तंत्र को मजबूत करता है.एकाग्रता को बनाए रखता है. त्वचा और चेहरे को क्रांतिवान बनाने में मदद करता है. यह क्रोध का प्रतीक माना जाता है.

शहद: यह हमारे शरीर की बढ़ी हुई चर्बी को घटाता है. धर्म के प्रति झुकाव को मजबूत करता है. यह लोभ का प्रतीक माना जाता है. ऊर्जा के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है. वाणी को मधुर करता है.

गंगाजल: यह मुक्ति का प्रतीक है. इसको ग्रहण करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.

घी: यह शरीर को बल और पुष्टि देता है. हड्डियों को मजबूत बनाता है. नेत्र के रोगों को भी दूर करता है. यह समृद्धि का प्रतीक है.

प्रयोग करने की विधि

-पंचामृत का निर्माण सूर्यास्त के पूर्व ही करना चाहिए.
-दूध के लिए गाय का दूध उत्तम माना जाता है.
-पंचामृत बन जाने के बाद उसमें तुलसी और गंगाजल अवश्य डालें.
-शालिग्राम का इसमें स्नान करवाना ना भूलें और यदि शालिग्राम नहीं है तो चांदी का सिक्का डालें.
-पंचामृत को दोनों हाथों से ग्रहण करना चाहिए.
-पंचामृत को ग्रहण करने के बाद दोनों हाथों से चोटी को स्पर्श करना चाहिए.

लाभ

-इसके सेवन से शरीर पुष्ट और रोग मुक्त रहता है.
-इसमें तुलसी का पत्ता डालकर नियमित सेवन करने से किसी प्रकार का रोग नहीं होता है.

जरूर पढ़े:-

पूर्णिमा व्रत का महत्व, विधि और आवश्यक जानकारियां

Tags

Share this story