सनातन धर्म में ईश्वर की प्रार्थना का महत्व

 
सनातन धर्म में ईश्वर की प्रार्थना का महत्व

प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है. प्रार्थना के द्वारा व्यक्ति अपनेऔर दूसरों की इच्छा पूर्ति की कोशिश करता है. यह व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों प्रकार की हो सकती है. सभी धर्मों के साथ ही विज्ञान ने भी प्रार्थना को स्वीकार किया है. इसे करने से मन शांत रहता है.

प्रार्थना

प्रार्थना का अर्थ होता है परमात्मा का मनन और उनका अनुभव करना. इसे करते समय शरीर मन व वाणी तीनों अपने आराध्य देव की सेवा में एक रूप में होते हैं. हृदय की पुकार ही प्रार्थना है. सच्चे मन से की गई प्रार्थना चमत्कारिक होती है. इसे करने का विशेष समय प्रातः काल और संध्याकाल बताया गया है.

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प्रातः काल की प्रार्थना

प्रात: काल अर्थात सुबह, भोर, सूर्योदय से पूर्व प्रार्थना करनी चाहिए. सुबह की प्रार्थना करने का तरीका एवं मंत्र इस प्रकार है-

-सुबह उठने के बाद बिस्तर पर ही अपने दोनों हाथों से देखते हुए. इस मंत्र का उच्चारण करें.

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविंदा प्रभाते कर दर्शनम्।।

अर्थात हाथ के ऊपरी भाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती और मूल भाग में गोविंद बसते हैं. इसीलिए प्रात काल उठकर अपने दोनों हाथों को मिलाकर उनके दर्शन करने और साथ ही अपने इष्ट देवता को याद करना चाहिए.

-बिस्तर से नीचे उतरते समय जमीन पर पैर रखने से पहले इस मंत्र को करें.

समुद्रवसने देवी! पर्वतस्तनमंडले।
विष्णु पत्नी! नमस्तुभयम पादस्पर्शम क्षमस्व मे।।

अर्थात समुंद्र में बसने वाली, पर्वत रूपी स्तनों को धारण करने वाली, भगवान श्री हरि की पत्नी हे भूमि देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं. तुम्हें मेरे पैरों का स्पर्श होता है. इसीलिए क्षमा मांगता हूं.

गुरु को नमस्कार करने से पहले इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.

गुरु ब्रह्मा गुरुविष्णुः गुरु देवो महेश्वराः।
गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, और गुरु ही भगवान शंकर है, गुरु ही साक्षात परब्रह्मा है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं.

संध्या वंदन

दिन और रात दोनों के मिलन का समय संध्या कहलाता है अर्थात वह समय जब दिन का अंत और रात का आरंभ होता है. संध्या वंदन को संध्यापासना भी कहते हैं. संध्या के समय प्रार्थना इस प्रकार की जाती है-

-इस समय पूजा किसी देवता या देवी की मूर्ति को देखकर की जाती है.
-संध्या पूजा में गुड़, घी, धूप, हल्दी, दीप, अगरबत्ती आदि का प्रयोग किया जाता है.
-इस समय मौन रहना चाहिए.
-संध्या काल में पूजा करने, दर्शन मात्र से मन और शरीर के सारे संताप मिट जाते हैं.

लाभ

-प्रार्थना से मन स्थिर और शांत रहता है.
-क्रोध पर नियंत्रण रहता है.
-स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है.
-चेहरे पर खुशी और चमक रहती है.

यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन 15 से 20 मिनट तक प्रार्थना करता है. तो वह अपने आराध्य से जुड़ने लगता है. जिससे उसके सारे संकट नष्ट हो जाते हैं.

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