बाबा बर्फ़ानी से जुड़े अविश्वसनीय रहस्य
बाबा बर्फ़ानी को ही अमरनाथ बाबा कहा जाता है. हिंदुओ का प्रमुख व अत्यंत धार्मिक तीर्थ स्थल माना जाता है अमरनाथ. यहां लाखों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु शिव जी की अद्भुत शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं. कश्मीर की बर्फ़ीली वादियों में स्थित अमरनाथ की गुफ़ा हमेशा से ही आस्था का प्रमुख केंद्र रही है. गुफ़ा में बर्फ़ की बनी हुई चमत्कारी शिवलिंग स्थित है. यह श्रीनगर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर है. समुद्र तल से इस गुफ़ा की ऊंचाई देखी जाए तो वह लगभग 3,978 मीटर होगी. अगर हम अमरनाथ गुफ़ा की बात करें तो उसकी ऊंचाई लगभग 150 मीटर और चौड़ाई 90 फीट है. यदि कोई श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा करना चाहता है. तो उसको सबसे पहले पहलगाम या बालटाल पहुंचना पड़ता है. क्योंकि अमरनाथ गुफ़ा का रास्ता इन्हीं दो जगहों से ही होकर जाता है. बाबा अमरनाथ की यात्रा अक्सर जुलाई माह से प्रारंभ होकर अगस्त माह तक चलती है. सावन के पावन मास में भी यात्रा होती है.
बाबा बर्फ़ानी से जुड़े रहस्य
लगभग 150 फुट परिधि की अमरनाथ गुफ़ा है. जिसमें पानी के बर्फ़ की बूंदे ऊपर से टपकती रहती हैं. और इन्हीं टपकने वाली बर्फ़ की बूंदों से लगभग 10 फुट की लंबाई का शिवलिंग बन जाता है. किन्तु आश्चर्य की यह बात है कि इन बूंदों से बना शिवलिंग ठोस बर्फ़ का होता है जबकि अन्य जगह इकट्ठी बर्फ़ कच्ची होती है अर्थात इतनी ठोस नहीं होती. बताया जाता है कि अमरनाथ गुफ़ा से कुछ फुट दूरी पर माता पार्वती, गणेश जी और भैरव बाबा की वैसे ही अलग-अलग हिमखण्डों से प्रतिमा समान संरचना बन जाती है.
पौराणिक कथाओं व मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने अमरनाथ गुफ़ा में ही भगवान शिव को अमरता के मंत्र सुनाए थे. बताया जाता है कि अमरनाथ गुफ़ा से लगभग 96 किलोमीटर दूरी पर स्थित पहलगाम में ही भगवान शिव ने रुक कर विश्राम की थी. और उन्होंने अपने नन्दी व बैल को यहीं छोड़ दिया था. जबकि माना जाता है कि उनके बिना शिवलिंग अधूरी होती है. शिव जी ने इसके बाद शेषनाग झील पर पहुंचकर अपने गले में पड़े सर्पों को भी उतार दिया. गणेश जी को महागुड़स पहाड़ पर छोड़कर अपने आप पंचतरणी नामक स्थान पर पहुंचकर पंच तत्वों का त्याग कर दिया.
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