Rath Yatra 2023: कौन है भगवान जगन्नाथ? जिनकी निकाली जाती है रथ यात्रा...

 
Rath Yatra 2023: कौन है भगवान जगन्नाथ? जिनकी निकाली जाती है रथ यात्रा...

Rath Yatra 2023: भगवान जगन्नाथ हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं जिनका मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में स्थित है. यह मंदिर भारतीय साहित्य और संस्कृति में एक अहम स्थान रखता है. जगन्नाथ मंदिर (Rath Yatra 2023) में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ भी विराजमान हैं. इन तीनों देवताओं की मूर्तियां भगवान विष्णु के एक रूप मानी जाती हैं.

इस मंदिर के दरबार में भगवान जगन्नाथ को "स्नान यात्रा" और "रथ यात्रा" के अवसर पर लाखों भक्तों के सामर्थ्य को दिखाने के लिए निकाला जाता है. पौराणिक कथा में कहा जाता है कि जगन्नाथ जी एक यादव राजा कृष्ण चन्द्र के रूप में पूजे जाते हैं, इसके अलावा,जगन्नाथ के दूसरे प्रमुख आराध्य हैं ऋषभदेव, विष्णु, नारायण, नीलमाधव, श्रीकृष्ण और महालक्ष्मी देवी हैं. जगन्नाथ (Rath Yatra 2023) मंदिर की जो कहानी है उसे रथ यात्रा के समय प्रस्तुत की जाती है.

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यह यात्रा हर साल पूरे हर्षोल्लास के साथ निकाली जाती है, और इसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की रथों को मंदिर से सबसे पहले निकाला जाता है. इन रथों को बड़ी संख्या में भक्तों द्वारा खींचा जाता है और यात्रा के दौरान मंदिर के आस-पास की सड़कों पर प्रदर्शन किया जाता है. यह यात्रा पूरी दुनिया के भक्तों को आकर्षित करती है और इसे 'जगन्नाथ रथ यात्रा' (Rath Yatra 2023) या 'पुरी रथ यात्रा' कहते हैं.

क्यों नहीं हैं भगवान जगन्नाथ (Jagannath rath yatra 2023) के हाथ?

पौराणिक कथा की मानें, तो एक बार भगवान जगन्नाथ, भगवान बालभद्र और देवी सुभद्रा ने अपने भक्त को वचन दिया था कि वे अपनी प्रतिमा को इतनी मासूमता के साथ बनाएँगे कि उसे किसी भी यात्री या भक्त को कोई पीड़ा न हो. वे चाहते थे कि सभी लोग उन्हें आराधना कर सकें वो भी बिना किसी दुख परेशानी के.इसलिए उन्होंने अपनी प्रतिमा के हाथ नहीं बनाए.

इसके साथ भगवान जगन्नाथ (Rath Yatra 2023) की प्रतिमा में हाथ न होने का कारण यह है कि यह प्रतिमा भगवान कृष्ण को प्रतिष्ठित करती है और कृष्ण को भगवान के रूप में अकेला प्रतिष्ठित किया जाता है, जबकि बालभद्र और सुभद्रा को उसके सहायक रूप में माना जाता है.

इस प्रकार, हाथ की अनुपस्थिति द्वारा यह प्रतिमा इस भाव में व्यक्त करती है कि भगवान जगन्नाथ केवल अपने आप में पूर्णता हैं और उनके साथ उनके सहायक रूप में आने वाले दूसरे देवी-देवताओं की आवश्यकता नहीं होती है.

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