जानिए कैसे जन्मी मां गंगा, क्यों मनाते है गंगा जयंती
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वैशाख माह के शक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटा में धारण किया था. इसलिए इस दिन को हम गंगा सप्तमी के रूप में मनाते है, या यूं कहे कि इस दिन को हम गंगा जयंती के रूप में मनाते है. जब मां गंगा धरती पर अवतरित हुई उस दिन को हम गंगा दशहरा के रूप में मनाते है, मां गंगा धरती पर जेष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आई थी. तब से हम इस तिथि को मनाते है और इस दिन हम मां गंगा का पूजन भी करते है.
गंगा जयंती के अवसर पर मां गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के समस्त दुष्कर्मों का नाश हो जाता है, और मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है. वैसे मां गंगा के स्नान कनालग ही महत्व है, मगर इस दिन स्नान करने से मनुष्य को उसके दुखो से मुक्ति मिलती हैं. इस दिन मां गंगा के मंदिरों वा अन्य मंदिरों में भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन दान पुण्य करने से अधिक लाभ होता है.
इसलिए मनाई जाती है गङ्गा जयंती
शास्त्रों के अनुसार जीवनदायनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायनी शिप्रा के स्मरण मात्र से ही आपको मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. गंगा जयंती पर गंगा स्नान से रिद्धि सिद्धि, यश वैभव की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन मांगलिक दोष के जातकों के लिए स्नान करने से विशेष लाभ मिलता है. विधि विधान से किया गया गंगा पूजन अमोघ फलदायिनी हैं.
शास्त्रों और पुराणों की माने तो मां गंगा भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली है. मां गंगा का धरती पर अवतरण भागीरथ के प्रयासों से हुआ था. ऋषि मुनि कपिल मुनि के शाप से भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों के उद्धार के लिए हुआ था. राजा सगर के वंशज भगीरथ ने अपनी घोर तपस्या से मां गंगा का धरती पर आगमन कराया था.
मां गंगा की वैसे तो अनेक पौराणिक कथाएं हैं, किंतु उनमें से एक है राक्षस बलि का वध, करके संसार को उसके भय से मुक्त कराने पर ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए थे, और बाद में उस जल को अपने कमंडल में समाहित कर लिया था.
यह भी पढ़ें: इसलिए नहीं की जाती सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की पूजा