गुड़ी पड़वा कब है? जानिए महत्व और कहानी

 
गुड़ी पड़वा कब है? जानिए महत्व और कहानी

गुड़ी पड़वा का हिन्दू धर्म में एक विशेष महत्व है. लेकिन इससे पहले यह जानना अति आवश्यक है. कि आखिर गुड़ी पड़वा क्या है? क्यों मनाते है? इसकी शुरुआत किसने की? इस त्यौहार का क्या इतिहास है?

गुड़ी पड़वा: महाराष्ट्रीयन नव वर्ष स्वरूप मनाते है

गुड़ी पड़वा महाराष्ट्रीयन नव वर्ष का स्वरूप माना जाता है. इसे खूब धूम-धाम से मनाया जाता है. दक्षिण भारतीय राज्यो में इसे फसल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. पूरा देश ही इस त्यौहार को मनाता है. हर जगह इस त्यौहार का नाम अलग अलग है. और हर किसी की अपनी अलग संस्कृति और ढंग है. जिसका पालन करते हुए वह ये पूजा पाठ सम्पन्न करते है. यह खास अनुष्ठान का दिन भी माना जाता है. इस दिन अनुष्ठान के मुहूर्त सूर्योदय से शुरू होते हैं और पूरे दिन चलते रहते हैं.

यदि गुड़ी पड़वा के इतिहास की बात करें तो हिन्दू शास्त्रों और पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था. तब से इस दिन को इस स्वरूप में त्यौहार की तरह मनाते है. ऐसा भी कहा जाता है प्रभु श्री राम जब रावण को परास्त कर के अयोध्या वापस आये इस खुशी में इस पर्व को मनाया जाता है. किन्तु इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है.

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गुड़ी पड़वा का क्या महत्व है :-

कहा जाता है इस त्यौहार की पवित्रता और आगमन से ही सभी बुराईयों का अंत प्रारम्भ होना शुरू हो जाता है. शास्त्रों व पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कहा जाता कि इस दिन उन्होंने ब्रह्मांड की रचना की थी. महाराष्ट्र राज्य में, इस दिन को भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस त्यौहार पर सुख समृद्धि का आगमन होता है. आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में इस अवसर को उगाड़ी त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। यह भी अत्यंत शुभ दिन है क्योंकि कि इस दिन से चैत्र नवरात्रि शुरू होता है. अगर कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि अलग-अलग लोगों के द्वारा अलग-अलग नाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है.

कहानी :-

इस दिन को जीत के प्रतीक के रूप में भी मनाते है. इसी दिन हूणों को राजा शालिवाहन ने हराया था. यह वह दिन है जब ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की और इस प्रकार गुड़ी पड़वा के दिन से सतयुग शुरू हुआ.

कब मनाया जाता है ?

हिंदू नववर्ष के प्रथम दिन ही गुड़ी पड़वा मनाते है. यह चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को यह त्यौहार आता आता है. इस दिन को सनातन धर्म में नववर्ष के रूप में मनाते है. इस बार गुड़ी पड़वा मंगलवार को अर्थात 13 अप्रैल 2021 को मनाई जाएगी। 12 अप्रैल से सोमवार सुबह 8 बजे से प्रतिपदा तिथि शुरू हो जाएगी. और 13 अप्रैल मंगलवार की सुबह 10 बजकर 16 मिनट पर समाप्त हो जाएगी.

अनुष्ठान का महत्व और मतलब :-

गुड़ी पड़वा पर अनुष्ठान की प्रक्रिया सूर्योदय से पहले शुरू होती है. जहां भक्त सुबह जल्दी उठते हैं. और अपने शरीर पर तेल लगाकर पवित्र स्नान करते हैं. घरों को सुंदर तरीके से सजाया जाता है. फिर भगवान ब्रह्मा की पूजा और प्रार्थना करते हैं. और उसके बाद गुड़ी फहराते हैं. इसके बाद, यह माना जाता है कि गुड़ी फहराकर श्रद्धालु भगवान विष्णु का आह्वान कर सकते है. इस दिन पीले रंग के वस्त्रों को धारण करना और जरूरतमंद को दान करना शुभ माना जाता है.

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