Lord Shiva facts: भगवान शिव के द्वारा धारण किए हुए प्रतीक चिन्हों का रहस्य, जानिए...

 
Lord Shiva facts: भगवान शिव के द्वारा धारण किए हुए प्रतीक चिन्हों का रहस्य, जानिए...

भगवान शिव को अक्सर हमने किसी चित्र या मूर्ति में देखा होगा. उस तस्वीर में आपने उनकी वेशभूषा पर भी ध्यान दिया होगा. आप सभी ने शिवजी के सिर पर जटा में चंद्रमा, गले में नाग और रुद्राक्ष की माला धारण करें देखा है. हाथ में डमरू और त्रिशूल धारण करें हुए है. शिव जी ने अपने पूर्ण शरीर पर भस्म रमा रखी है. उनके शरीर के निचले हिस्से को वे व्याघ्र चर्म से लपेटे रहते हैं. वे वृषभ की सवारी करते हैं और कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाए बैठे रहते हैं.

आज के इस लेख में हम शिव जी के इन प्रतीक चिन्हों से बनी उनकी वेशभूषा के बारे में जानेंगे

चंद्रमा
यूं तो भगवान शिव के कई नाम है मगर हम भगवान शिव को सोम के नाम से भी जानते है. सोम का अर्थ होता है चंद्र. इसी वजह से सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता है. चंद्रमा को मन का कारक माना गया हैं और इसी वजह से शिव जी द्वारा चंद्रमा को धारण कर मन पर नियंत्रण का प्रतीक माना गया है.

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भगवान शिव के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव द्वारा सोम अर्थात चन्द्रमा के श्राप का निवारण करने के कारण यहां चन्द्रमा ने शिवलिंग की स्थापना की थी. इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम 'सोमनाथ' प्रचलित हुआ.

त्रिशूल
भगवान शिव का इकलौता अस्त्र है त्रिशूल. यह अचूक और घातक शस्त्र है और इसकी शक्ति के आगे कोई भी शक्ति भी ठहर सकती है.

माना जाता है कि यह महाकालेश्वर के 3 कालों (वर्तमान, भूत, भविष्य) का प्रतीक भी है. इसके अलावा यह स्वपिंड, ब्रह्मांड और शक्ति का परम पद से एकत्व स्थापित होने का प्रतीक है. यह वाम भाग में स्थिर इड़ा, दक्षिण भाग में स्थित पिंगला तथा मध्य देश में स्थित सुषुम्ना नाड़ियों का भी प्रतीक है.

नाग
हम सभी इस बात से अच्छी तरह से अवगत है कि भगवान शिव के गले में एक नाग हमेशा रहता है. आज हम इस नाग के बारे में आपको बताएंगे.

भगवान शिव को नागवंशियों से घनिष्ठ लगाव था. नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे. कश्मीर का अनंतनाग इन नागवंशियों का गढ़ था. नाग कुल के सभी लोग शैव धर्म का पालन करते थे. भगवान शिव के नागेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम से स्पष्ट है कि नागों के ईश्वर होने के कारण शिव का नाग या सर्प से अटूट संबंध है. भारत में नागपंचमी पर नागों की पूजा की परंपरा है.

नागों के प्रारंभ में 5 कुल थे. उनके नाम इस प्रकार हैं- शेषनाग (अनंत), वासुकि, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक. इन्हीं में से वासुकि वह नाग है जो भगवान शिव के गले में हार समय पड़ा रहता है.

डमरू
जिस प्रकार सभी देवी देवताओं के पास कोई न कोई वाद्य यंत्र होता है उसी प्रकार शिव जी के पास डमरू है. शिव जी को संगीत की दुनिया का जनक भी माना जाता है. शिवजी ही वह देव है जिन्होंने सबसे पहले नृत्य करके गाने, बजाने और नाचने की विधि को प्रारंभ किया था. भगवान शिव दो प्रकार का नृत्य करते है एक को हम तांडव कहते है, जिसमें शिव जी के पास डमरू नही होता है और वह अपना क्रोध प्रकट करते है. दूसरा होता है आनंद नृत्य यह शिव जी अति प्रसन्न होने के समय डमरू के साथ करते है.

वृषभ/ नंदी
भगवान शिव के वहां को हम नंदी के नाम से जानते है जिसका दूसरा नाम वृषभ भी होता है. नंदी हमेशा से ही शिव जी के साथ रहता है और यह भोलेनाथ का परम भक्त भी है. वृषभ का अर्थ धर्म है. मनुस्मृति के अनुसार वृषो हि भगवान धर्म:. वेद ने धर्म को 4 पैरों वाला प्राणी कहा है. उसके 4 पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं. महादेव इस 4 पैर वाले वृषभ की सवारी करते हैं यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनके अधीन हैं.

भस्म
शिव जी अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं. भस्म जगत की निस्सारता का बोध कराती है. भस्म आकर्षण, मोह आदि से मुक्ति का प्रतीक भी है. देश में एकमात्र जगह उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव की भस्मा आरती होती है जिसमें श्मशान की भस्म का इस्तेमाल किया जाता है.

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