हिंदुओं के प्रथम वेद ऋग्वेद का अर्थ और महत्व

 
हिंदुओं के प्रथम वेद ऋग्वेद का अर्थ और महत्व

हिंदू धर्म के अनुसार 4 वेद है। जिसमें से ऋग्वेद सबसे ही प्राचीन वेद है। इस वेद को विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ भी माना जाता है। ऋग्वेद सबसे पहला वेद है जो पद्धात्मक है। यह अपने आप में संपूर्ण वेद है। ऋग्वेद अर्थात ज्ञान और रचनाओं में वृद्ध है, इसको वैदिक ब्रह्मांड में परम पूज्य माना जाता है। वसंत पूजा के समय वेदपाठ का शुभांरभ ऋग्वेद के पाठ से ही होता है।

ऋग्वेद के 10 मंडलम्मे 1028 सुक्त है‌ जिसमें 11 हजार मंत्र है। प्रथम और अंतिम मंडल समान रूप से बड़े है। उनमें सूक्तों की संख्या भी 191 है। दूसरे से सातवें मंडल तक का अंश ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग है। आठवें और प्रथम मंडल के प्रारम्भिक 50 सूक्तों में समानता है। इसका नवां मंडल सोम संबंधी आठों मंडलों के सूक्तों का संग्रह है। इसमें नवीन सूक्तों की रचना नहीं है। दसवें मंडल में प्रथम मंडल की सूक्त संख्याओं को ही बनाए रखा गया है लेकिन इस मंडल सभी परिवर्तीकरण की रचनाएं हैं। दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग बताई गई है, जो कि 107 स्थानों पर पाई जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में कई ऋषियों द्वारा रचित विभिन्न छंदों में लगभग 400 स्तुतियां या ऋचाएं हैं।

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ऋग्वेद का महत्व

ऋग्वेद को भारत हो भी विश्व भर में सबसे प्राचीनतम रचनाओं में देखा जाता है। इसकी तिथि 1500–1000बी.सी में मानी जाती है। ऋग्वेद की अधिकांश रचनाएं देवी देवताओं की स्तुतिपरक रचनाओं पर लिखित है। यादापि उनमें कुछ ठोस ऐतिहासिक सामग्री काम ही मिलती है।

एक स्थान ‘दाशराज्ञ युद्ध‘ जो भरत कबीले के राजा सुदास एवं पुरू कबीले के मध्य हुआ था, का वर्णन किया गया है। भरत जन के नेता सुदास के मुख्य पुरोहित वसिष्ठ थे, जब कि इनके विरोधी दस जनों के संघ के पुरोहित विश्वामित्र थे। दस जनों के संघ में- पांच जनो के अतिरिक्त- अलिन, पक्थ, भलनसु, शिव तथ विज्ञाषिन के राजा सम्मिलित थे। भरत जन का राजवंश त्रित्सुजन मालूम पड़ता है, जिसके प्रतिनिधि देवदास एवं सुदास थे। भरत जन के नेता सुदास ने रावी नदी के तट पर उस राजाओं के संघ को पराजित कर ऋग्वैदिक भारत के चक्रवर्ती शासक के पद पर अधिष्ठित हुए। ऋग्वेद में, यदु, द्रुह्यु, तुर्वश, पुरू और अनु पांच जनों का वर्णन मिलता है।

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