Navratra 2021: मां कूष्मांडा का स्वरूप और पूजा विधि
मां कूष्मांडा की आराधना नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है. मान्यता है कि देवी कूष्मांडा की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन से दुखों का विनाश हो जाता है. यदि हम पौराणिक मान्यताओं की मानें तो उनमें बताया गया है कि इस सृष्टि के निर्माण में कूष्मांडा देवी का भी अतुलनीय योगदान है. इसी वजह से कूष्मांडा देवी को आदिशक्ति एवं सृष्टि की आदिस्वरूपा कहा जाता है. बताया जाता है कि जब सम्पूर्ण संसार में अंधकार व्यापक रूप से फैला हुआ था. तब देवी ने अपनी मुस्कुराहट से इस संसार में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया. और सृष्टि की रचना में भी सहयोग किया.
मां कूष्मांडा का स्वरूप
कूष्मांडा देवी का स्वरूप बेहद मनमोहन एवं आकर्षक है. जोकि भक्तों में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. अष्टभुजाधारी देवी कूष्मांडा अपनी भुजाओं में गदा, अमृत, धुनष, बाण, कमण्डल, कमल-पुष्प, चक्र, जप माला एवं अमृत से भरा हुआ दैवीय कलश रखती हैं.
पूजा विधि
विद्वानों के अनुसार सूर्यदेव को देवी कूष्मांडा का निवास स्थान कहा गया है. मान्यता है कि नवरात्रि के चौथे दिन हमें कूष्मांडा देवी के साथ-साथ भगवान सूर्य का भी स्मरण करना चाहिए. इससे आपको यश, बल व दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होगा. माता कूष्मांडा की पूजा करने के लिए व्यक्ति को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने के पश्चात माता का स्मरण करना चाहिए. और साथ ही व्रत रखने का भी दृढ़ संकल्प करना चाहिए. यदि आप पूरे नवरात्रि व्रत हैं तो आपने जहां पर माता की प्रतिमा की स्थापना की है. वहीं पर विराजित होकर कूष्मांडा देवी का ध्यान करना चाहिए. पूजा की थाली में पुष्प, मिष्ठान, धूपबत्ती इत्यादि अवश्य होनी चाहिए. पूरे विधि विधान से पूजा करने के पश्चात माता की आरती करें. भोग लगाएं एवं सभी लोगों में प्रसाद वितरित कर दें.
आप सभी से निवेदन है कि मां कूष्मांडा का व्रत अवश्य करें. इससे आपको दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होगा.
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