Navratra 2021: मां सिद्धिदात्री का स्वरूप एवं पूजा विधि

 
Navratra 2021: मां सिद्धिदात्री का स्वरूप एवं पूजा विधि

मां सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्रि की नवमीं तिथि यानी अंतिम दिन होती है. माता सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना जो व्यक्ति सच्चे मन एवं निश्छल भाव से करता है. तो देवी उसपर अपनी कृपा बनाएं रखती हैं. सिद्धिदात्री देवी की आराधना करने से व्यक्ति सिद्धि प्राप्त कर सकता है. नवरात्रि की नवमीं तिथि को जो भक्त विधि विधान से माता की आराधना करता है. उसे सिद्धियों की प्राप्ति होती हैं. मान्यता है कि ब्रह्मांड के प्रारंभ में भगवान शिव ने आदि पराशक्ति देवी की कठोर तपस्या व आराधना की थी. जिससे देवी सिद्धिदात्री ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और आठ सिद्धियां वरदान के रूप में प्रदान कीं. सिद्धियों की प्राप्ति हेतु केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि देव, असुर, गन्दर्भ, ऋषि इत्यादि भी कठोर तपस्या करते हैं.

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप

देवी सिद्धिदात्री कमल के पुष्प पर विराजित होती हैं. यह भी चार भुजाधारी हैं. इनकी सवारी सिंह अर्थात शेर हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सिद्धिदात्री ने अपना यह रूप केवल भक्तों की रक्षा करने व उनपर कृपा बनाएं रखने के लिए धारण किया था.

पूजा विधि

इस व्यक्ति को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. और माता के व्रत का संकल्प करना चाहिए. जो लोग पूरे नवरात्रि व्रत होते हैं. उनके लिए यह व्रत का अंतिम दिन होता है. उनको इस दिन देवी सिद्धिदात्री के साथ साथ अन्य देवताओं की भी आराधना करनी चाहिए. भक्तों को इस दिन पूरे विधि विधान से हवन अवश्य करना चाहिए. सर्वप्रथम देवी सिद्धिदात्री की प्रतिमा किसी चौकी पर स्थापित करें. प्रतिमा स्थापित करने से पूर्व गंगाजल छिड़क लें. फिर देवी की प्रतिमा के समक्ष हवनकुंड बनाएं. और हवन करते वक्त देवी के सभी रूपों व सभी देवी देवताओं के नाम की आहुति देनी चाहिए. इससे अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है.

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नवरात्रि के नौं दिन अत्यधिक पावन होते हैं. वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति को पूरे नवरात्रि व्रत रखना चाहिए. यदि ऐसा सम्भव नहीं है. तो नवरात्रि के प्रथम व अंतिम दिन का उपवास अवश्य करें.

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