Sankashti Chaturthi: कब है संकष्‍टी चतुर्थी का व्रत, क्या है महत्व? कैसे प्रसन्न करें विघ्नहर्ता को; जानें शुभ मुहूर्त

  
Sankashti Chaturthi: कब है संकष्‍टी चतुर्थी का व्रत, क्या है महत्व? कैसे प्रसन्न करें विघ्नहर्ता को; जानें शुभ मुहूर्त

Sankashti Chaturthi: हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने की चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है और वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विकट चतुर्थी कहते हैं. यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है और इस दिन विधि-विधान से उनका पूजन किया जाता है. गणपति जी प्रथम पूजनीय हैं. गणपति को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है और जिस व्यक्ति पर उनकी कृपा होती है. वह उसके सभी विघ्न यानि समस्याओं को दूर करते हैं.

Sankashti Chaturthi का दिन और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 9 अप्रैल को सुबह 9 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 10 अप्रैल को सुबह 8 बजकर 37 मिनट पर होगा. पंचांग के अनुसार 9 अप्रैल को संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह 9 बजकर 13 मिनट से लेकर 10 बजकर 48 मिनट तक पूजा के लिए शुभ मुहूर्त है. इसके अलावा सुबह 10 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त है. शुभ मुहूर्त में पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होता है.

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

संकट को हरने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. संस्कृत भाषा में संकष्टी शब्द का अर्थ होता है- कठिन समय से मुक्ति पाना. यदि किसी भी प्रकार का दु:ख है तो उससे छुटकारा पाने के लिए विधिवत रूप से इस चतुर्थी का व्रत रखकर गौरी पुत्र भगवान गणेशजी की पूजा करना चाहिए. इस दिन भगवान गणेश का पूजन किया जाता है और हिंदू धर्म में गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता माना गया है. संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखा जाता है और इस दिन व्रत रखने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. जिस व्यक्ति पर गणपति की कृपा होती है उसके जीवन में आ रहे सभी विघ्न दूर होते हैं.

संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि

संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन किया जाता है. इस दिन स्नान आदि करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. इसके बाद मंदिर स्वच्छ करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें. फिर भगवान गणेश को हल्दी का तिलक लगाएं और दूर्वा, फूल, माला व फल अर्पित करें. फिर घी का दीपक जलाएं. गणपति को लड्डू बेहद प्रिय हैं. इसलिए पूजा में लड्डू का भोग अवश्य लगाना चाहिए. फिर व्रत कथा पढ़ें व आरती करें. दिनभर व्रत रखने के बाद रात में चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को जल देकर पारण करें.

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