शनिवार व्रत: शनि देव के व्रत की विधि, महत्व एवं कथा

 
शनिवार व्रत: शनि देव के व्रत की विधि, महत्व एवं कथा

हिंदू धर्म में सप्ताह के 7 दिनों में किसी ना किसी देवता का पूजन एवं व्रत दिनके हिसाब रखा जाता है. वैसे ही शनिवार के दिन भगवान शनिदेव की पूजा अर्चना की जाती है. शनिवार का व्रत वर्ष के किसी भी शनिवार के दिन शुरू किया जा सकता है. परंतु सावन मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करना अति मंगलकारी होता है. सही है. शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता हैं. हमारे सभी अच्छे बुरे कर्मों का फल देने का अधिकार शनिदेव को ही है.

विधि एवं महत्व

-इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करना चाहिए.
-मन ही मन जय शनि देव जय, शनि देव का रटन करना चाहिए.
-शनि देव की मूर्ति स्थापित करें.
-यदि लोहे की मूर्ति है तो पंचामृत से स्नान करवाएं.
-काले तिल, फूल, दीप, काले वस्त्र व सरसों के तेल के इस्तेमाल से पूजा करें.
-इस दिन शनि मंदिर जाकर नीले लाजवंती, फूल, तिल, तेल, गुड़, शनिदेव को अर्पित करें.
-पूजन के बाद पीपल के वृक्ष पर जल जल चढ़ाकर, सूत का धागा वृक्ष में बांधकर सात परिक्रमा लगाएं.
-भोजन एक बार ही करें.
-शनि स्त्रोत का पाठ करना उत्तम माना जाता है.
-चींटी को आटा डाला विशेष फलदाई होता है.
-कथा अवश्य सुने और दिन भर उनका स्मरण करते रहे.

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शनिवार की कथा

कौन बड़ा है कौन छोटा इस बात को लेकर सभी नौ ग्रहों में विवाद छिड़ गया. इसका फैसला करने के लिए सभी न्याय प्रिय राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे और अपनी अपने विचार रखे. तभी राजा ने एक उपाय सोचा और स्वर्ण, रजत, कांस्य, सीसा, रांगा जस्ता, अभ्रक व लोहे के सिंहासन क्रम से रखवा दिए और नौ ग्रहों से बैठने का निवेदन किया. और कहा जो सबसे बाद में बैठेगा वही छोटा होगा. लोहे का सिंहासन बाद में होने पर शनिदेव क्रोधित हो गए और वहां से चले गए. बाकी ग्रह भी खुशी-खुशी चले गए.

कुछ समय बाद राजा को साढ़ेसाती का सामना करना पड़ा. तभी घोड़े के सौदागर के रूप में महल में आए. राजा ने एक घोड़ा खरीदा. वह घोड़ा राजा को जंगल में ले गया. वहां राजा काफी परेशान रहे. भटकते भटकते एक राजा एक सेठ के घर पहुंचे. राजा भोजन कर रही थी. तभी रानी का हार खूंटी पर दिखाई नहीं दिया. इसलिए चोरी का इल्जाम राजा पर लग गया. रात्रि स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा तुमने मुझे छोटा बताकर कितने कष्ट झेले हैं. तब राजा ने क्षमा मांगी और कहा जो जातक मेरी कथा और व्रत करेगा उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे

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