Solar eclipse: जानिए सूर्य ग्रहण कब, कैसे और क्यों होता है?

 
Solar eclipse: जानिए सूर्य ग्रहण कब, कैसे और क्यों होता है?

सूर्य ग्रहण लगने के पीछे विज्ञान और धर्म दोनों ही प्रकार के कारण होते है. यदि विज्ञान के अनुसार देखे तो सूर्य ग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा सूर्य और धरती के बीच में आ जाए और चंद्रमा के कारण सूर्य की आंशिक या पूर्ण रूप से छाया ढ़क जाए.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देखें तो ग्रहण राहु या केतु के कारण लगता है. माना जाता है कि ग्रहण के समय हमारे देवता परेशानी में होते हैं और राहु इस दौरान ब्रह्मांड पर अपना पूरा जोर लगा रहा होता है. इसलिए ग्रहण को देखना अच्छा नहीं माना गया है. राहु केतु छाया ग्रह हैं जिसके प्रभाव से चंद्रमा और सूर्य भी नहीं बच पाते। इसलिए अगर ये कुंडली में बुरे भाव में जाकर बैठ जाएं तो जातक को काफी कष्टों का सामना भी करना पड़ सकता है.

सूर्य ग्रहण होने के कारण

पौराणिक कथाओं के आधार पर यह भी माना जाता है कि केतु और राहु अमावस्या के दिन ही सूर्य का ग्रास करते है इसलिए सूर्य ग्रहण अमावस्या तिथि पर ही लगता है. वहीं चंद्र ग्रहण पूर्णिमा को लगता है क्यूकि पूर्णिमा में राहु केतु चंद्रमा को अपना ग्रास बनाते है.

धार्मिक मान्यताओं और कथाओं के अनुसार राहु और केतु इतने शक्तिशाली कैसे हुए इसका वाक्य समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है. दरअसल समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं को पूर्ण अमृत बाटने का विचार किया था जिसकी भनक एक राक्षस को पड़ गई थी. जिसके बाद वह भी देवताओं की पंगत में आ कर बैठ गया और इस बात का अंदाजा सूर्य देव और चंद्र देव को हो गया जिसके बाद उन्होंने विष्णु की जो इस बात से अवगत कराया. किंतु तब तक वह राक्षस अमृत ग्रहण कर चुका था इस वजह से विष्णु जी के उस पर प्रहार करने से वह मरा नही किंतु उसके टुकड़े हो गए. इन्हीं टुकड़ों को राहु और केतु का नाम प्रदान हुआ. जिसके बाद उस राक्षस को यह वरदान भी प्राप्त हुआ की वह चंद्र देव और सूर्य देव को अपना ग्रास बना सकेगा.

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