गंगा पुत्र भीष्म पितामह की मृत्यु से जुड़ी कहानी
भीष्म पितामाह मां गंगा के पुत्र थे. उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था. लेकिन जब महाभारत का युद्ध हुआ तो पितामह भीष्म तन से तो कौरवों की तरफ़ से युद्ध कर रहे थे. किन्तु मन से पांडवों की ओर ही थे. क्योंकि वह जानते थे न्याय के रास्ते पर कौन है और अन्याय के रास्ते पर कौन है. कौरवों व पांडवों में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जो भीष्म का सम्मान ना करता हो. क्योंकि वह बड़े होने के साथ-साथ अत्यंत वीर एवं पराक्रमी थे. जब महाभारत का युद्ध हुआ तो काफी दिनों तक तो उन्होंने युद्ध नहीं किया पर जब युद्ध किया तो पलक झपकते ही वह हज़ारो सैनिक मार देते थे.
जब भीष्म इतना भीषण युद्ध कर रहे तो श्री कृष्ण और पांडवों में हलचल मच गई कि यदि पितामह इसी तरह युद्ध करते रहे तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा और कौरवों की विजय हो जाएगी. इसीलिए एक दिन युद्ध के पश्चात श्री कृष्ण और अर्जुन पितामह के शिविर में गए. प्रणाम किया और उनसे उनकी मृत्यु का कारण पूछ लिया. अर्थात अर्जुन और श्री कृष्ण ने भीष्म से ही उनकी मौत या पराजय किस प्रकार हो सकती है राज जान लिया.
अगले दिन कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों दलों की सेनायें आमने-सामने आई. भीष्म समेत अनेकों वीर युद्ध मैदान में उपस्थित. जब भीष्म से युद्ध करने के लिए अर्जुन का रथ आया तो देखा गया कि अर्जुन के रथ पर शिखंडी सवार थे. शिखंडी ना तो पुरुष थे और ना ही महिला, वह अर्धनारी थे. इधर भीष्म भी प्रतिज्ञा कर चुके थे कि वह कभी किसी स्त्री पर शस्त्र नहीं उठाएंगे. जब उन्होंने अर्जुन के रथ पर शिखंडी को देखा तो भीष्म ने अपने शस्त्र रख दिए और निहत्थे खड़े हो गए. इसी का फायदा उठाते हुए शिखंडी ने बाणों की बौछार कर दी. उसके बाद अर्जुन ने भी बाण चलाए.
बाणों की शैय्या पर क्यों लेटे भीष्म पितामह
जब भीष्म के शरीर को अर्जुन और शिखंडी के बाणों ने छलनी कर दिया तो पितामह धरती पर जा गिरे. शिखंडी कोई साधारण व्यक्ति थे. बल्कि काशी नरेश की पुत्री अम्बा का अवतार थे. यह पूर्व जन्म की कहानी से सम्बंधित है. पितामह को श्राप था कि अम्बा ही उनकी मौत का कारण बनेंगी. और जो बाण उनके शरीर के आर-पार थे वह शैय्या के समान हो गए. और पितामह का शरीर उसी बाणों की शैय्या पर रहा. किन्तु उनका सर नीचे लटक रहा था तो अर्जुन ने बाणों की ही तकिया बना दी. बताया जाता है कि पितामह ने अपने 101वें जन्म में एक करकैटा नाम के पक्षी का शिकार किया था. जोकि तीर लगने से घायल हो गया और बेरिया के पेड़ पर जा गिरा. बेरिया एक कटीला वृक्ष होता है और उसके कांटे उस पक्षी की पीठ में चुभ गए. जिस कारण वह लगभग 18 दिनों तक तड़पता रहा और अंत में उसने प्राण त्याग दिए. किन्तु उसने भीष्म को श्राप दिया था कि जब भीष्म की मृत्यु हो तो वह भी इसी प्रकार तड़प-तड़प के मरें.
जब उनको प्यास लगी तो अर्जुन ने धरती में बाण मारा तो जल आ गया जिससे उनकी प्यास समाप्त हुई. भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान था. किन्तु उन्होंने इतना कष्ट होने के बाद भी शरीर नहीं छोड़ा. मान्यता है कि जब सूर्य उत्तरायण होता है तब यदि कोई प्राण त्यागता है तो उसे स्वर्ग प्राप्त होता है. इसीलिए पितामह भी सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे. और लगभग 58 दिनों के पश्चात उन्होंने अपने प्राण त्यागे. जिस दिन पितामह ने अपनी इच्छा अनुसार प्राण त्यागे उसी दिन को भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता.
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