Vishwakarma Puja 2021 : विश्वकर्मा पूजा को खास बनाएगा सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश, जानें कथा, महत्व, शुभ मुहूर्त और विधि

 
Vishwakarma Puja 2021 : विश्वकर्मा पूजा को खास बनाएगा सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश, जानें   कथा, महत्व, शुभ मुहूर्त और विधि

Vishwakarma Puja 2021: विश्वकर्मा पूजा का पर्व 17 सितंबर को मनाया जायेगा। इस दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश कर रहा है इसलिए कन्या संक्रांति भी मनाई जायेगी। इसी के साथ वामन जयंती और परिवर्तिनी एकादशी भी इसी तारिख को पड़ रही है। जो कि मिल कर इस दिन को बेहद खास बनाने वाले है। ऐसे में अगर आप इस दिन सच्चे मन से पूजा करतो हैं तो आपके जीवन में कभी भी सुख समृद्धि की कमी नहीं रहती है। लेकिन कैसे पूजा पाठ कर इस दिन का आप लाभ उठा सकते हैं, क्या है पूजा का विधि, शुभ मुहूर्त और इस दिन का महत्व आइए बताते हैं आपको

कैसे करें पूजा?

-इस दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं। फिर स्नान कर विश्वकर्मा पूजा की सामग्रियों को एकत्रित कर लें।
-बेहतर होगा इस पूजा को पति पत्नी साथ में करें।
-पूजा के लिए पति-पत्नी हाथ में चावल लें और भगवान विश्वकर्मा को सफेद फूल अर्पित करें।
-इसके बाद हवन कुंड का बनाएं। इसके बाद धूप, दीप, पुष्प अर्पित करते हुए हवन कुंड में आहुति दें।
-इसके बाद अपनी मशीनों और औजारों की पूजा करें।
-फिर भगवान विश्वकर्मा को भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांट

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पूजा का शुभ मुहूर्त

विश्वकर्मा पूजा इस साल 17 सितंबर को अर्थात कल है. पंचांग के अनुसार, पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 17 सितंबर को सुबह 6:07 बजे से लेकर 18 सितंबर शनिवार को दोपहर 3:36 बजे तक है. ध्यान रहे कि 17 सितंबर को सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक राहुकाल रहेगा. इस दौरान विश्वकर्मा पूजा न करे

विश्विकर्मा पूजा कथा

इस ​दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने का विधान है। उनकी कृपा से बिगड़े काम बन जाते हैं, बिजनेस और रोजगार में सफलता प्राप्त होती है। दुनिया ​के पहले वास्तुकार एवं इंजीनियर कहे जाने वाले विश्वकर्मा जी ने इस सृष्टि की रचना करने में परम पिता ब्रह्मा जी की सहायता की थी। उन्होंने सबसे पहले इस संसार का मानचित्र तैयार किया था।
प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी। उन सभी का निर्माण विश्वकर्मा जी के द्वारा ही किया गया था।यहां तक की सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलियुग का हस्तिनापुर सभी विश्वकर्मा जी के द्वारा ही रचित थे।सुदामापुरी की रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता भी विश्वकर्मा जी ही थे। इससे यह पता चलता है कि धन धान्य की अभिलाषा करने वालों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

विश्वकर्मा जी को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। भगवान विश्वकर्मा की एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में काशी में रहने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था।वह अपने कार्य में निपुण तो था लेकिन स्थान- स्थान पर घूमने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। उसके जीविकापर्जन का साधन निश्चित नहीं था। इतना ही नहीं उस रथकार की पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहा करती थी।

पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों साधु और संतों के पास जाते थे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार से कहा तुम दोनों भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ। तुम्हारी सभी इच्छाएं अवश्य ही पूरी होंगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा का महत्व सुनों। इसके बाद अमावस्या को रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जिससे उसे धन धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।

विश्विकर्मा पूजा विधि

सुबह उठकर स्नानादि कर पवित्र हो जाएं। फिर पूजन स्थल को साफ कर गंगाजल छिड़क कर उस स्थान को पवित्र करें।
एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
पीले कपड़े पर लाल रंग के कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं।
भगवान गणेश का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें। इसके बाद स्वास्तिक पर चावल और फूल अर्पित करें। फिर चौकी पर भगवान विष्णु और ऋषि विश्वकर्मा जी की प्रतिमा या फोटो लगाएं।
एक दीपक जलाकर चौकी पर रखें। भगवान विष्णु और ऋषि विश्वकर्मा जी के मस्तक पर तिलक लगाएं।
विश्वकर्मा जी और विष्णु जी को प्रणाम करते हुए उनका स्मरण करें। साथ ही प्रार्थना करें कि वे आपके नौकरी-व्यापार में तरक्की करवाएं।
विश्वकर्मा जी के मंत्र का 108 बार जप करें। फिर श्रद्धा से भगवान विष्णु की आरती करने के बाद विश्वकर्मा जी की आरती करें। आरती के बाद उन्हें फल-मिठाई का भोग लगाएं. इस भोग को सभी लोगों में बांटें।

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