शबरी की कहानी जिन्होंने खिलाए थे भगवान राम को जूठे बेर

 
शबरी की कहानी जिन्होंने खिलाए थे भगवान राम को जूठे बेर

शबरी श्री राम की परम भक्त थीं. इसकी गाथा रामायण में मिलती है. रामायण सनातन धर्म के लिए सबसे पावन अथवा महान ग्रंथो में से एक है. इसके महत्व को हम शब्दों में पिरो भी नहीं सकते,ऐसी है इसकी महानता. रामायण त्रेता युग में भगवान विष्णु के सातवें अवतार, मर्यादा पुरुोत्तम श्री राम की जीवन गाथा है. यह हमें बहुत कुछ सिखाती है, रामायण का सबसे महत्वपूर्ण पाठ यह है की बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यूं ना हो परन्तु अंत में विजय अच्छाई की ही होती है.
रामायण ना की सिर्फ किसी के शौर्य कि गाथा है ,परन्तु यह हर तरह के सामाजिक दोष पर भी दृष्टि डालती है. उदाहरण के रूप में रामायण में गरीब-अमीर उंच-नीच इत्यादि जैसे सामाजिक दोषों की स्पष्ट रूप से निंदा की गई है.

शबरी की कहानी

रामायण में जातिवाद को खत्म कर क्षत्रिय वर्ग में जन्मे भगवान श्री राम ने भील वर्ग में जन्मी शबरी के झूठे बेर खाए थे . यह गाथा अत्यधिक बहुचर्चित है परन्तु शबरी के बारे में कोई कुछ नहीं जानता. तो प्रकाश डालते है शबरी के जीवन पर. शबरी का असली नाम श्रमणा था. भेल जाती में जन्मी शबरी भीलों के मुखिया की पुत्री थीं. उनके पिता ने उनका विवाह एक भील कुमार से तय किया, एक प्रथा के अनुसार विवाह से पूर्व सौ पशुओं की बली देना अनिवार्य था.

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इस प्रथा को पूर्ण करने के लिए सौ पशु लाए गए, शबरी को यह प्रथा बिल्कुल नहीं लुभाई,वह अत्यधिक आहत हुई. उन्होंने विवाह से भागने का निश्चय किया और अपने निर्णय पर उन्होंने अमल भी किया. और वह विवाह से एक दिन पूर्व भाग गई और दंडकारण्य नामक एक वन में पहुंच गई। मातंग ऋषि उस वन में तपस्या करते थे. शबरी उनकी सेवा करने की अत्यधिक इच्छुक थीं परन्तु भील वर्ग की होने के कारण उन्हें उनसे मिलने की अनुमति नहीं थी, लेकिन मानों शबरी ने तो जैसे दृढनिश्चय कर लिया था.

वह नियमित रूप से रोज़ सुबह-सुबह आश्रम से नदी तक की राह को साफ कर देती थीं, हर एक कांटे को हटा वहां बालू बिछा देती थीं. यह सब वह छिप कर करती थीं, परन्तु एक दिन ऋषि ने उन्हें देख लिया. वह बहुत प्रसन्न हुए और शबरी से अपने आश्रम में रहने का अनुरोध किया. जब ऋषि अपनी मृत्यु के निकट थे तब उन्होंने शबरी को बताया कि वह इसी आश्रम में भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करें, उन्हें भगवान के साक्षात्कार का सौभाग्य प्राप्त होगा. शबरी वर्षों तक भगवान श्री राम की प्रतीक्षा करती रहीं. वह रोज़ भगवान श्री राम के लिए बेर तोड़ कर लाती थीं, कोई बेर कड़वा ना हो इस लिए वह हर बेर को चख कर देखती थीं. एक दिन भगवान श्री राम उनके द्वार पर पहुंच गए जब वह अपने वनवास पर थे. शबरी ने भगवान श्री राम के चरण धोए और उन्हें बैठाया.

भगवान श्री राम को बड़े प्रेम से उन्होंने अपने जूठे बेर खिलाए. भगवान श्री राम उनके स्नेह में लीन हो बेर खाने लगे. लक्ष्मण जी ने कुछ संकोच दिखाया परन्तु भगवान श्री राम की इच्छा के अनुसार उन्होंने बेर उठा तो लिए परन्तु खाए नहीं अपितु फेंक दिए, अंत में जब मेघनाद के द्वारा लक्षमण जी मूर्छित हो गए थे तब वह बेर ही संजीवनी बूटी के रूप में लक्ष्मण जी के प्राणों के रक्षक बने.

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