वामन द्वादशी कब और क्यों मनाई जाती है…
वामन द्वादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है. द्वादशी तिथि एकादशी के एक दिन बाद मनाई जाती है. हमारे ग्रंथों के अनुसार वामन द्वादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने वामन देव का अवतार लिया था. इस दिन को श्रवण द्वादशी के नाम से भी जानते हैं. क्यों कि इस दिन श्रवण नक्षत्र में द्वादशी होती है. इसलिए इस दिन रहने वाले व्रत को श्रवण द्वादशी व्रत भी कहते हैं. श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि इसी दिन भगवान वामन अवतरित हुए थे.
भगवान विष्णु को ही नारायण, कृष्ण, वासुदेव, परमात्मा, वामन देव इत्यादि नामों से सम्बोधित किया जाता है. वामन अवतार भगवान विष्णु का पांचवा अवतार माना जाता है. हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन भक्त को पूरे विधि विधान से व्रत रखना चाहिए. आपको एक बात और बता दूं जो त्रिदेव है अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश. उनमें से ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचयिता, महेश जी को संहारक, और विष्णु जी को संरक्षक कहा जाता है. इसीलिए विष्णु जी की आराधना करनी चाहिए वह आपकी हर परिस्थिति में रक्षा करेंगे.
वामन द्वादशी व्रत विधि
सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने के उपरांत व्यक्ति को व्रत का संकल्प करना चाहिए. उसके बाद यदि आपने दृढ़ संकल्प कर लिया है तो पूरे दिन का व्रत रखना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अभिजीत मुहूर्त में करनी चाहिए. शाम के समय पुनः स्नान कर पूजा करनी चाहिए एवं व्रत कथा सुननी चाहिए. यदि आप पूजन के उपरांत एक कटोरी में दही, चावल और चीनी रखकर किसी ब्राह्मण को देते हैं तो अत्यधिक पूण्य माना जाता है. और ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही खुद फलाहार करना चाहिए. और पूजा के दौरान व्रत रखें हुए भक्त को भगवान विष्णु के नाम का 108 बार जाप करना चाहिए. इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हो जाते है.
इस दिन आप सभी भक्तों को व्रत रखना चाहिए और विष्णु जी की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए.
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