बाबा खाटूश्याम भगवान विष्णु का कौन सा अवतार थे
बाबा खाटूश्याम की महिमा अपरम्पार है. भगवान विष्णु ने धरती पर कई रूपों में जन्म लिया, आवश्यकता के अनुसार उन्होंने कई अवतार धारण किए. उन्हीं में से एक है खाटू श्याम का अवतार खाटू श्याम के अवतार को भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार के तौर पर जाना जाता है. राजस्थान के सीकर जिले में बाबा खाटू श्याम जी का एक विशाल मंदिर है जहां लोग दूर-दूर से मत्था टेकने आते हैं. लोगों की आस्था और विश्वास है कि खाटू श्याम महाराज उनकी हर विनती को पूरी करेंगे और वह चाहे तो रंक को भी राजा बना सकते हैं.
बाबा खाटूश्याम जी के बारे में
पौराणिक कथाओं के अनुसार बाबा खाटूश्याम जी का संबंध महाभारत काल से है. इनको पांडु पुत्र महा बलशाली भीम का पुत्र माना जाता है. माना जाता है कि खाटू श्याम महाराज की अपार शक्तियों और उनके कौशल के कारण भगवान श्री कृष्ण ने उनको अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था.
कहानी खाटूश्याम महाराज की
कहा जाता है कि जब दुर्योधन की चाल से बचकर लाक्षागृह से निकलने के बाद पांडव पनाहों में भटक रहे थे तभी उनकी मुलाकात हिडिंबा नाम की एक राक्षसनी से होती है. उस राक्षसनी को पांडु पुत्र भीम से प्रेम हो जाता है और वह उन्हें पति के रूप में प्राप्त करना चाहती है. माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिंबा का विवाह होता है. इसके पश्चात उनके पुत्र घटोत्कच का जन्म हुआ. बाद में जाकर घटोत्कच का एक पुत्र बर्बरीक हुआ जो अपने पिता से भी शक्तिशाली था.
बर्बरीक देवी का उपासक माना जाता था. देवी ने उन्हें वरदान स्वरुप तीन बाण दिए थे जो कि लक्ष्य भेदन के बाद पुनः वापस लौट आते थे. इनकी वजह से वह अजय हो गया था. महाभारत के युद्ध के समय भी युद्ध देखने आ रहा था पर श्री कृष्ण जानते थे. कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो इसका परिणाम पांडवों के विरुद्ध होगा. बर्बरीक को रोकने के लिए श्री कृष्ण गरीब ब्राह्मण बनकर बर्बरीक के सामने आए. अनजान बनते हुए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि कौन और कहां जा रहे हो तो इसके जवाब में बर्बरीक ने कहा कि वह एक दानी योद्धा है. और महाभारत के युद्ध का निर्णय अपने एक बाण से ही कर सकता है.
भगवान श्री कृष्ण ने सोचा क्यों ना इसकी परीक्षा ली जाए तो उसने एक बाण चलाया जिससे पीपल के सभी पत्तों में छेद हो गया पर श्री कृष्ण के पैरों के नीचे था. इसलिए बाण ऊपर ही ठहर गया. भगवान कृष्ण उसकी शक्तियां देख हैरान थे. और वह उसे किसी तरह युद्ध में जाने से रोकना चाहते थे. उन्होंने बर्बरीक से कहा कि तुम बड़े बलशाली हो मुझ गरीब को कुछ दान देने की इच्छा नहीं करती. जब श्री कृष्ण ने बर्बरीक ने दान मांगने के लिए कहा तो उन्होंने दान में उसका सर मांग लिया. बात समझ गया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है इसके बाद उसने उन्हें वास्तविक परिचय देने के लिए कहा जब श्री कृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया तो बर्बरीक खुशी-खुशी अपना शीश दान करने को तैयार हो गया.
फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान करके बर्बरीक ने श्री कृष्ण को अपना शीश दान कर दिया पर शीश दान करने से पहले उसने युद्ध देखने की इच्छा जताई थी. इसलिए भगवान कृष्ण ने उसके कटे हुए शीश को अवलोकन के लिए एक ऊंचे स्थान पर रख दिया. युद्ध जीतने के बाद जब पांडव विजय श्री का श्रेय लेने हेतु बात विवाद कर रहे थे. तब श्री कृष्ण ने कहा इसका निर्णय तो बर्बरीक के शीश से होगा। बर्बरीक का शीश बताता है कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चल रहा था. पांचाली द्रोपदी महाकाली की भांति रक्तदान कर रही थी. भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रसन्न होकर उसके कटे हुए शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हारी मेरे श्याम नाम से पूजा की जाएगी. तुम्हारा नाम लेने मात्र से ही लोगों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति होगी.
खाटू बाबा के चमत्कार
भक्तों में इनके प्रति अपनी आस्था है कि वह अपने हर खुशी और सुख का श्रेय बाबा खाटू श्याम जी को ही देते हैं.भक्तों की श्रद्धा है कि बाबा उनकी हर मुराद पूरी करते हैं. हमारी भी प्रार्थना है कि बाबा खाटूश्याम जी महाराज अपना आशीर्वाद पूरी दुनिया पर बनाए रखें. और मनुष्य का कल्याण होता रहे साथ ही सभी की इच्छाओं की पूर्ति होती रहे.
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